शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

महँगाई के गूमड़

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//          
          मध्यमवर्गीय भारतीय को रुला-रुलाकर मारने के लिए पूर्ववर्ती दुष्ट मानवों ने क्या-क्या धत्कर्म नहीं किये। एक निठल्ले ने पहिए का अविष्कार कर मारा। फिर किसी दूसरे ने पहियों के ऊपर दुनिया भर का कबाड़ फिट कर वाहन बना दिया। किसी और ने धातु की टंकियाँ बनाकर कबाड़ में लगा दीं। फिर कोई बेचैन शोधकर्ता ज़मीन के अन्दर जा घुसा और उसने एक बदबूदार काले कीचड़नुमा पदार्थ की खोज कर दी जिसे पेट्रोलियम नाम से पुकारा जाने लगा। एक दूसरा शोधकर्ता बरसों से इसी ताक में बैठा था कि पेट्रोलियम की खोज हो तो मैं उससे डीज़ल-पेट्रोल और घासलेट बनाऊँ। उसने डीज़ल-पेट्रोल बनाया और धातु की टंकियों में भर दिया। लो साहब, वाहनों की बाढ़ आ गई, वे सड़कों पर सरपट दौड़ते फिरने लगे। जिसे देखो वही उस कबाड़ के ऊपर अपना पृष्ठ भाग रखने का बेताब दिखाई देने लगा।
          सड़क पर दौड़ते-फिरते वाहनों में आनंदपूर्वक घूमते फिर रहे इन्सानों का सुख कुछ लोगों से देखा नहीं गया। उन्होंने महँगाई का अविष्कार कर लिया और जब मर्जी तब पेट्रोल-डीज़ल को महँगा कर इन्सान को सताना चालू कर दिया। आजकल घड़ी-घड़ी जिस तरह से पेट्रोल-डीज़ल के भाव बढ़ते हैं, पहिए का अविष्कार करने वाले उस बंदे के ऊपर मेरी खुंदक बढ़ती जा रही है। अगर वह निठल्ला बैठेठाले पहिये का अविष्कार न करता, तो यदि पेट्रोलियम का अविष्कार हो भी जाता तब भी किसी को क्या पड़ती कि वह पेट्रोल-डीज़ल का अविष्कार कर उससे लोहे के कबाड़ को दौड़ाता फिरता। पहिया न होता तो पेट्रोल-डीज़ल न होता, न महँगाई हमें रोने पर मजबूर कर पाती।
          एक शोधकर्ता ने एक चीज़ खास तौर पर हिन्दुस्तानी गरीबों के लिए इज़ाद की थी और उसी समय तय कर दिया था कि यह लम्बी-लम्बी लाइनें लगाने के उपरांत ही बाँटी जाएगी। इसका नाम है घासलेट। इस घासलेट की कीमत में आग लगा कर कम्बख्तों ने गरीबों-गुरबों को भी रुला लिया।
          देखिए, एक भारतीय को रुलाने के लिए दुष्ट मानव कब से कैसे-कैसे षड़यंत्र करता आ रहा है। इन्हीं षड़यंत्रकारियों की वजह से हर भारतीय महँगाई के नाम पर सर पटक-पटककर रो रहा है। हरेक के माथे पर स्पष्टतः बड़े-बड़े गुमड़ दिख रहे हैं, महँगाई के गूमड़।

5 टिप्‍पणियां:

  1. Very good Satire. Aapke Vyangyao ke saath aapse bhi pyar ho gaya hai......

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  2. सही कहा, सुकूं से जी रहे थे हम, ये आकर हलचल मचा गये।

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  3. कल 10/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. सही कहा आपने। पहिया बनाने वाला तो चला गया अरबों लोगों को हमेशा के लिये फंसा गया।

    पहिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी, काहे को चकती बनायी?

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