//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
जनसंदेश टाइम्स लखनऊ में |
अँग्रेजी ना आवे तो कितनी प्रॉबलम हो जाती है। बहुत दिनों से सुन रहे थे, ‘स्लट-वॉक-स्लट-वॉक’, कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह ‘स्लट-वॉक’ आखिर है क्या बला। दो-तीन पढ़े-लिखों से पूछा तो वे भी निरीह भाव से हमारा ही मुँह ताकने लगे। आखिरकार जब हमने डिक्शनरी खोलकर देखी तो हमारे तो होश ही उड़ चले और दिल्ली में उस ज़गह जा गिरे जहाँ स्लट-वॉक होने वाला था। दरअसल, डिक्शनरी में ‘स्लट’ का अर्थ लिखा था ‘कुलटा’। कुलटा से न समझ में आए तो समझाया गया था ‘फूहड़ औरत’, फिर भी अगर किसी बेवकूफ को न पल्ले पड़े तो स्पष्ट किया गया था कि ‘स्लट’ का अर्थ ‘वैश्या’ होता है।
मैं काफी समय तक होश में नही रहा और दिल्ली में ही कहीं पड़ा हुआ सोचता रहा कि आखिर क्यों समाज की कुछ संभ्रांत महिलाएँ अपने ऊपर ‘कुलटा’, ‘फूहड़ औरत’ और ’वैश्या’ आदि शब्दों के तमगे लगाकर ‘वॉक’ करने पर आ तुली! ‘वॉक’ करने का इतना ही शौक था तो करतीं, खूब करतीं, मार्निंग वॉक करतीं, इवनिंग वॉक करतीं, नून वॉक करतीं, चाहें तो कैट वॉक भी कर लेतीं, लेकिन कम से कम ‘स्लट-वॉक’ का पश्चिम लिखित-निर्देशित नाटक तो ना ही करतीं, क्योंकि अपने यहाँ तो लोगों को फोकट की नाटक-नौटंकी देखने का भारी शौक है, असर किसी पर धेले का होने का नहीं, सब के सब फोकट का तमाशा देख बेशर्मी से दाँत निपोरकर अपने-अपने घर चल देंगे।
यह ठीक है कि कुछ लफंगों और लम्पट पुरुषों को अपनी बेहया आँखों से हर वक्त महिलाओं के शरीर का एक्सरे सा करने की आदत होती है, और इस एक्सरे के लिए उन्हें बस एक अदद औरत की दरकार होती है, चाहे वह किसी भी तबके की हो, चाहे जो कपड़े पहने हुए हो। मिनी-माइक्रो कपड़ों से लेकर घूँघट-बुरखा कुछ भी हो वे इसके भीतर मौजूद जिस्म का काफी गहराई से एक्सरे कर लेते हैं, और बीमार मन को तसल्ली दे लेतें हैं। मगर मर्दों में इस बीमारी को फैलाने के लिए उस बाज़ार के खिलाफ कोई ‘वॉक’ नहीं किया जाता जिसने हरेक उत्पाद की बिक्री बढ़ाने के लिए औरत के जिस्म को चौक-चौराहों के होर्डिंगों पर टाँग रखा है, सारी वर्जनाओं को आग में झोंककर फिल्मों, पत्र-पत्रिकाओं और जगह-जगह स्त्रियों के देह की मंडी लगा रखी है। इस मंडी के खिलाफ महिलाएँ पल्लू को कमर में खोसकर मैदान में उतरें तब हमारा कलेजा ठंडा होवे। रोजमर्रा के घरेलू दमन, मारपीट, अपशब्दों की बौछार, जगह-जगह अश्लील नज़रों की मार के खिलाफ उनके वॉक का इंतज़ार गली-गली में सबको हैं, मगर यदि वे अपने-आपको खुद ही ‘स्लट’ संबोधित कर ‘वॉक’ पर निकल पड़े तो पुरुषों के इस बाज़ार पोषित हलकटपने में रत्ती-राई फर्क आने वाला नहीं है। स्त्रियों को इन कुलटा, वैश्या, स्लट जैसे गंदे शब्दों को दुनिया की हर डिक्शनरी से खुरच-खुरच कर निकाल फेंकने की ज़रूरत है, इन्हें माथे पर चिपकाएँ घूमने में कौन सी सूरमाई है।
अंधानुकरण नहीं होना चाहिए....
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है....
पूर्णतः सहमत हूँ सर !
जवाब देंहटाएंसादर
मन को क्यों व्यक्त करना।
जवाब देंहटाएंबेशर्मों द्वारा बेशर्मी के अधिकार के लिये निकाला जाने वाला मोर्चा है स्लट-वॉक।
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