//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
सरकारी क्षेत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक पूर्व सैनिक ने सेनापति बनकर बड़ी शिद्दत से मोर्चा सम्हाला, अब उन दूसरे क्षेत्रों पर नज़र अटकना लाज़िमी है, जहाँ सेनापति की खाल तो कई लोग ओढ़े घूम रहे हैं परन्तु करम उनके मामूली रंगरूटों के स्तर के भी नहीं हैं। फौजें भी गली-गली में कई हैं, मगर जब सेनापति ही ‘लडै़या’ हो तो फौज क्या खाकर कुछ कर लेगी। ज़ाहिर है देश की ये तमाम फौजें भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कुछ करने की चिंता से पूरी तौर पर बरी हैं।
आचरण की भ्रष्टता का मुद्दा शुद्ध रूप से सांस्कृतिक पुनर्जागरण का मुद्दा है, मगर संस्कृति के ‘अलमबरदार’ इस मुद्दे पर घोड़े बेचकर सो रहे हैं, चाहे फिर वे पुरातन भारतीय संस्कृति का ‘अलम’ थामे हुए हों या प्रगतिशील-जनवादी संस्कृति का। सारे ‘अलम’ इस्तरी किये धरे अलमारियों की शोभा बढ़ा रहे हैं या आधे झुके हुए शोक मग्न दिखाई दे रहे हैं।
सब जानते हैं कि इंसान भ्रष्ट होने से पहले ‘सांस्कृतिक पतन’ या ‘पतित संस्कृति’ का शिकार होता है। ऐसा नहीं है कि जन्म लिया और चल दिया भ्रष्ट होने। हरे-हरे नोट दिखाए जाए तो ऐसे ही कोई लपक नहीं लेता, एक बार ज़रूर अपनी रीढ़ को टटोलता है। अगर खुदा न खास्ता रीढ़ मजबूत मिली तो उसे खोलकर ‘पतन’ के लिए भेजता है, फिर नोटों की तरफ हाथ बढ़ाने का साहस करता है। एक बार नोटों की गंध का नशा हो जाए तो फिर धीरे-धीरे अपने आचरण का पूरा किरियाकरम कर डालता है।
कुछ लोगों के मत में साहित्य का काम देश भर में रद्दी का उत्पादन करते रहना होता है, इससे इंच भर सांस्कृतिक मूल्य भले न स्थापित हों, भरपूर रद्दी अवश्य निकलनी चाहिए। जब व्यक्तिवाद की निकृष्टता, आचरण की भ्रष्टता और पूँजीवादी संस्कृति का जबरदस्त बोलबाला हो, तब साहित्य के सेनापति और रंगरूट ‘व्यवस्था’ की बदबूदार ‘विष्ठा’ को भाषा की चाशनी चढ़ा-चढ़ा कर ईनाम-ओ-इकराम के लिए अपनी झोली फैलाए बैठे रहे, यह इस युग की सबसे बड़ी त्रासदी नहीं तो क्या है।
जब तक साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र की फौजें अपनी लड़ैयागिरी से बाज नहीं आतीं, भ्रष्टाचार की यह लड़ाई भले ही शताब्दियों तक खिचे, यह सूरत नहीं बदलने वाली।
लड़ैयागिरी से किसी का भला नहीं हुआ है।
जवाब देंहटाएंआचरण की भ्रष्टता का मुद्दा शुद्ध रूप से सांस्कृतिक पुनर्जागरण का मुद्दा है....
जवाब देंहटाएंएकदम सच्ची बात कही सर,
पुनर्जागरण की ही आवश्यकता है आज...
सादर...
बहुत खूब प्रमोद भाई। कुछ लोग ही हैं जो खुद के बारे में न सोच कर सबके बारे में सोचते हैं। आपके जज्बे को सलाम। मेल मिल गई थी मैने समझा कोई नई मेल है यह मै पहले ही देख चुनी थी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन ।
जवाब देंहटाएंलड़ैयागिरी शब्द बहुत दिनों बाद सुना...जबलपुर की यादें तरोताजा हो गई..आभार.
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