//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
रिटायर्ड बुड्ढों की एक बैठक में बघारी जा रही शेखियों का तमाम बुड्ढों द्वारा बड़े चटखारे ले-लेकर आनंद लिया जा रहा था। बघार लगा रहे थे एक रिटायर्ड बड़े बाबू। ‘‘अरे साहब ‘ईमानदार’ तो हमने देखा है, इतना ‘हरामी’ था इतना ‘हरामी’ था कि पूछो मत। उससे बड़ा हरामी ईमानदार तो हमने अपनी पूरी ज़िन्दगी में नहीं देखा और भगवान करें कभी देखने को भी न मिले। कसम से, यह तमाखू हाथ में है, भगवान झूठ न बुलवाए, ईमानदारी का ख़ब्त सवार था कम्बख्त के सर पर, पागल था पूरा पागल। न किसी से कुछ लेता था न लेने देता था। जितने दिन रहा, चाय-पान तक को तरस गए।
सरकार के पैसे पर ऐसे कुंडली मार कर बैठता था जैसे उसके बाप का पैसा हो। दस रुपट्टी का कोई बिल पेश कर दे तो रेट पता करने खुद दुकान पर पहुँच जाता था, और जो किसी ने दो-चार रुपये बढ़ाकर बिल बनवाया हो तो समझ लो अमानत में खयानत के लिए चार्जशीट जारी। दफ्तर का झाडू़-कट्टा, ऐसिड-फिनाइल, कुनैन की गोलियाँ तक बाज़ार से खुद खरीद कर लाता था ताकि कोई दो पैसे न मार ले।
इतनी बार कान में मंत्र फूँका कि साहब ‘पार्टियाँ’ आपकी मेहरबानी की तलबगार है, ज़रा रहमदिली बरता करो, कुछ उनका भी भला होगा, कुछ अपना भी। मगर नहीं, उस बदमाश ने किसी ‘पार्टी’ को एक पैसे की चोरी नहीं करने दी। इतनी बड़ी-बड़ी पार्टियाँ थीं, कोई मंत्री का रिश्तेदार, कोई मुख्यमंत्री का, कोई डायरेक्टर का साला तो कोई कमिश्नर का भांजा, मगर साहब किसी को भी उस कमीने ने घास नहीं डाली। दसियों बार सस्पेंड हुआ, पच्चीसों बार लूप लाइन में पड़ा-पड़ा सड़ता रहा, मगर मजाल है जो किसी तुर्रम खाँ के सामने जाकर दुम हिलाई हो। हमने बहुत समझाया, साहब मान जाओ, ऊपर वालों के छर्रे हैं तो क्या हुआ अपना हिस्सा तो अपन को खुशी-खुशी देने को तैयार हैं! दे दो थोड़ी रियायत, अपने बाप का क्या जा रहा है। क्वालिटी को क्या चाटना है! अपने घर का काम तो है नहीं, सरकारी है, सरकारी तरीके से ही चलने दो। चार पैसे आने दो, एक पैसा ऊपर जाने दो, दो पैसे आप रख लो, एक पैसा हम लोग मिल बाँटकर खा लेंगे। सबके बच्चे दुआएँ देंगे! मगर कसम से, कुत्ते का पिल्ला टस से मस नहीं हुआ।
अब बताओ, इकलौती बिटिया की शादी करी, डिपार्टमेंट से एक काले कुत्ते तक को इनव्हाइट नहीं किया, लोग लिफाफा जो दे जाते। लिफाफे से भारी चिढ़ थी कम्बख्त को। कहता था गिफ्ट के बहाने जाने कौन रिश्वत थमा जाए, और फिर बाद में अपना नाजायज़ काम करवाने के लिए सिर पर आ खड़ा हो। बताओ, यह भी कोई बात होती है! हमने कितनी शादियाँ देखी है, अफसर को खाली-मात्र जेब में हाथ डालकर ज़ुबान भर हिलाना पड़ी है, खड़े-खड़े सबरे इंतज़ाम हो गए। बेटियों की शादियों में लोगों की जमा पूँजी हिल्ले से लग जाती है, मगर हमने अफसरों का बैंक बैंलेंस दुगना-तिगुना होते हुए देखा है। पर साहब इस आदमी को ईमानदारी का कीड़ा इस बुरी तरह से काटा था कि पूछो मत। इसने शादी के कार्ड पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा दिया था- ‘‘किसी भी प्रकार का नगद अथवा उपहार लाने वाले को जेल की हवा खानी पड़ सकती है।’’ बताओ अब, था कि नहीं चिरकुट ! मेहमानों को चाय और ‘मारी’ बिस्कुट पर दफा कर दिया छिछोरे ने, बड़ा ईमानदार बना फिरता था। अरे ईमानदारी का इतना ही शौक था तो ईमानदारी से सबको खिलाता-पिलाता, नहीं था अंटी में कुछ तो दो-तीन ‘पार्टियों’ को साध लेता, नहीं थी दम तो हमसे कहता, हम इंतज़ामों का ढेर लगवा देते! मगर नहीं साहब, उसे तो पता नहीं किस पागल कुत्ते ने काट रखा था, ईमानदारी का भूत कम्बख्त नींद में भी उसका पीछा नहीं छोड़ता था।
खैर साहब, रिटायरमेंट से छः महीने पहले एक बार अपने पल्ले पड़ गया सुसरा, नानी याद दिला दी अपन ने। उसका ईमानदारी का भूत लपेट कर उसी की जेब में डाल दिया। हुआ यह कि अपन ने उसके दस्तखत से हुए एक सरकारी भुगतान में लम्बा फ्रॉड पकड़ लिया। गलती उसकी एक पैसे की नहीं थी, नीचे वालों ने उसकी ऐसी-तैसी कर दी थी। मगर फ्रॉड तो फ्रॉड है, अपन ने भी अपनी ज़िम्मेदारी ईमानदारी से निभाई और पेल के वसूली निकाल दी। हिसाब लगाया तो पता चला कि पेंशन, जी.पी.एफ., ग्रेज्यूटी वगैरा पूरी ज़ब्त हो जाएगी फिर भी गिरह से पैसा जमा करना पड़ेगा। घिग्घी बंध गई ईमानदार की! चार-चार बच्चे, उनकी पढ़ाई, शादी-ब्याह आँखों के सामने नाचने लगे। बीवी अलग टी.बी. की मरीज बनकर रात-भर खो-खो करती रहती थी। एक पैसा कभी बचाया नहीं कम्बख्त ने, जब देखा कि अब तो भीख माँगकर घर चलाने की नौबत आ जाएगी तब दिन में सितारे नज़र आने लगे ईमानदार को। एक दिन शाम को अंधेरा होने के बाद चुपचाप मेरे घर आया और गज़ब देखों कि बच्चों के लिए कैडबरी चॉकलेट और मिठाई के डिब्बे लेकर आया था। मेरा हाथ पकड़कर गिड़गिड़ाता हुआ बोला-बड़े बाबू, मेरी जिन्दगी आपके हाथ में हैं, देखिए अगर कुछ हो सकता हो तो, तुम जो कहोगे मैं कर दूँगा, किसी तरह मुझे इस वसूली से बचाओं। बहुत रोया, बहुत गिड़गिड़ाया। मेरे पॉव पर गिरने को तैयार हो गया। सारी ईमानदारी की अकड़ गायब हो गई थी। एक ईमानदार ऊँट पहाड़ के नीचे आकर मेरे सामने घुटनों के बल गिरा पड़ा था। उल्लू का पट्ठा पहले ही थोड़ा नीचे गिर जाता तो कम से कम हम जैसे नीच के पैरों में गिरने की नौबत तो नहीं आती। हमने सोचा चलो देर आयद दुरूस्त आयद। ऐसी गोपाल गांठ लगाई कि इसे बचाकर दूसरे दो को ले लिया लपेटे में। दोनों पर अपन ने पुख्ता मामला ठोक दिया और तगड़ा माल लेकर सारा मामला रफा-दफा करवा दिया। ईमानदारी का पुतला बहुत खुश हुआ मुझे बेईमानी करते देख। मैंने भी जाते-जाते कह दिया-साहब यही गति है दुनिया कीं, आप भी अगर थोड़ा हमारे बाल-बच्चों का ख्याल रख लेते तो आपकी इज़्जत नहीं घट जाती। अब देखिये आपके बाल-बच्चों और परिवार का मुँह देखकर हमने आपको जेल की चक्की पीसने से बचाया कि नहीं! किसी का क्या गया इसमें। सरकारी काम है साहब, ज़माने के साथ चलने में किसी के बाप का आखिर जाता क्या है! ईमानदारी का कोई मैडल तो मिलता है नहीं ?’’
अंधेरा हो गया था, सारे बुड्ढे इस अनुभव की पृष्ठभूमि में देश में चल रहीं भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम के बारे में सोचते हुए अपने-अपने घर चले गए।
शुक्रवार के 17-23 जून के अंक में प्रकाशित रचना
बहुत सही लिखा है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बाबू की जात बड़ी कमीनी
जवाब देंहटाएंहम भी बड़े लाभान्वित हुये।
जवाब देंहटाएंसरकास्टिक
जवाब देंहटाएंबहुत ही जबरदस्त..इधर काफी दिनों बाद आना हो पाया...क्षमाप्रार्थी. कुछ व्यस्तता बनी हुई है.
जवाब देंहटाएंZabardast!
जवाब देंहटाएंव्यंग्य भी नस्तर चुभो गया।
जवाब देंहटाएंमार्मिक व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य
जवाब देंहटाएंगजब टाइप की बात लिखा है....जोरदार है....
जवाब देंहटाएंPramod ji,
जवाब देंहटाएंaapka karaara vyang bahut chokha laga. sahi kaha saale imaandaar na khud kaahte hain na dusron ko khaane dete hain. ab kaun sa apne baap ka jata hai sarkaari hai, looto aur lootne do. par ye kambakhat imaandaar aur agar sarkari baabu ho to bas... aana hin padta hai oont ko pahaad ke niche kabhi na kabhi, koi chaara nahin...guzara nahin. jay bhrashtaachar...
सटीक और मारक व्यंग्य है । पिछले 28 वर्षो से मन्थन फीचर्स का संचालन कर रहा हूं, आज भी देशभर के 30 हिंदी अखबारों को मुफ्त सेवा देता हूं । आप भी व्यंग्य भेज सकते हैं,स्वागत है । प्रकाशनोपरांत लेखकीय प्रति प्राप्त होते ही आपको भेजी जाएगी ।
जवाब देंहटाएंमनोज अबोध ,मुख्य संपादक मन्थन फीचर्स, सरस्वती मार्ग, बिजनौर-246701 उ0प्र0
आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।
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