शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

भाँति-भाँति के व्हिसिल ब्लोअर


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//            
मनुष्य की नैसर्गिक योग्यताओं में एक होती है सीटी बजाने की योग्यता जिसे आंग्ल भाषा में व्हिसिल ब्लोइंग कहा जाता है। आमतौर पर इस योग्यता का मौलिक उपयोग शोहदों द्वारा लड़कियों को छेड़ने के लिए किया जाता रहा है। इसके बाद फिर सबसे ज़्यादा अगर किसी ने व्हिसिल ब्लोई है तो वह रात्रीकालीन पहरेदारों ने! हाथ में डंडा लिए व्हिसिल ब्लो-ब्लो कर वे चोरों से सुरक्षा की गलतफहमी बनाए रखते हैं और इस गलतफहमी के समानान्तर चोरियाँ होती रहती हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ चिल्ला-चोट करने वालों को भी व्हिसिल ब्लोअर कहा जाता है। व्हिसिल ब्लोइंग का काम शोहदों, पहरेदारों के मुँह से निकलकर एन.जी.ओ कर्मियों और राजनीतिज्ञों के मुँह में पहुँच गया है, हालांकि इनके मुँह में न व्हिसिल है और न हाथ में डंडा। उल्टा इन व्हिसिल ब्लोअरों को तो पुलिस के डंडे खाना पड़ रहे हैं और जेल भी जाना पड़ रहा है।
बाबा रामदेव ने काले धन के खिलाफ व्हिसिल ब्लोई, उन्हें अपने पिटते समर्थकों को छोड़ नारी वेश में पलायन करना पड़ा। अण्णा टीम ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध व्हिसिल ब्लोई तो उन्हें जेल भेज दिया गया और भ्रष्ट होने के आरोप चस्पा किये गए। उधर सांसद खरीद फरोख्त कांड में कई एक जेल की हवा खा रहे हैं जो अपने आप को व्हिसिल ब्लोअर कह रहे हैं।
           पहले राजा राममोहन राय, विद्यासागर जैसे व्हिसिल ब्लोअर होते थे, जिन्होंने सामाजिक परिवर्तन की व्हिसिल ब्लोई, भगतसिंह, सुभाष बोस जैसे व्हिसिल ब्लोअर हुए जिन्होंने शोषित-पीड़ितों आम जनसाधारण की व्हिसिल ब्लोई, नतीजा एक को फाँसी और दूसरे ने देश छोड़ा। गाँधीजी भी एक व्हिसिल ब्लोअर हुए, उनकी व्हिसिल ऐसी तेज़ ब्लो गई की अँग्रेज भाग खड़े हुए। आज़ादी के बाद तो पूछिए मत किस कदर व्हिसिल ब्लो करने वाले पैदा होते चले गए, हरेक ने मात्र वोटरों को हाँकने वाली व्हिसिल ब्लोई। किसी ने धर्म की व्हिसिल ब्लोई तो किसी ने भाषा की, कोई प्रांत की व्हिसिल ब्लो रहा है तो कोई जात-पात की व्हिसिल ब्लोए चला जा रहा है। देश में भाँति-भाँति के व्हिसिल ब्लोअर हो गए हैं मगर किसी को यह परवाह नहीं है कि उनकी व्हिसिलों से आम लोगों के कान के पर्दे फटे जा रहे हैं। 

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