//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
देश में कई सारी क्रांन्तियाँ हुई है, जैसे वाहन क्रांति, टेलीविजन क्रांति, कम्प्यूटर क्रांति, इंटरनेट क्रांति, टेलीफोन और मोबाइल क्रांति आदि-आदि। मुझे अवसर मिले तो मैं दस-बीस क्रांतियाँ और करवाकर महान क्रांतिकारी बन जाऊँ। दरअसल देश में अभी सैकड़ों क्रांतियों की जरुरत है, उसके बिना देश सही मायने में विकसित देश नहीं कहला सकता। जो देश कहला रहे हैं वे जबरन कहला रहे हैं, उन्हें इन क्रांतियों के बगैर विकसित कहलाने का कोई हक नहीं।
उपभोक्तागण दुकानदारों द्वारा पूरा पैसा लेकर भी तराजू में डंडी मारकर कम तौलने की टुच्ची हरकतों से आजीज़ आ चुके हैं। इस मामले में तत्काल क्रांतिकारी कदम उठाया जाना बेहद जरुरी है, वर्ना दुकानदार लोग डंडी मार-मारकर बिल्डिंगें तानते रहेंगे और उपभोक्ता उन बिल्डिंगों के नीचे बैठकर भीख माँगने को मजबूर होंगा। मेरे पास एक घाँसू आइडिया है, आम जनता को अपना निजी काटा-तराजू रखने की आज़ादी होना चाहिये। अपना तराजू लेकर दुकान पर जाओ, अपनी आँखों के सामने गल्ला तुलवाओ और चले आओ।
इसी तरह पेट्रोल चोरी की वारदातें भी रोकी जा सकती है। जनता अपनी गाड़ी में अपना निजी लीटर का नाप लेकर चले, खुद पेट्रोल नाप-नाप कर टेंक फुल कर ले, गिनकर पैसा दे और चल दे। या फिर पेट्रोलपंप के नलके में लगाने के लिये एक छोटा सा पेट्रोल मीटर ईजाद किया जाए, हर आदमी अपना-अपना मीटर साथ लेकर चले और पूरा पेट्रोल पा ले। पब्लिक मिलावटखोरों से निबटने के लिए किस्म-किस्म के पोर्टेबल शुद्धता मापी यंत्र अपने झोले में लेकर चलें, जहाँ शक हुआ कि चट से अपना यंत्र बाहर निकाला, शुद्धता की जाँच की और पुलिस को फोन कर दिया।
अब समस्या यह आएगी कि नाप-तौल की इस क्रांति की लपेट में आए बदमाशों को आप पुलिसवालों के हवाले करोगे मगर वह रिश्वत लेकर उसे छोड़ देंगे। ऐसे में निजी पुलिस क्रांति भी प्रारंभ की जा सकती है। हर आदमी को अपना निजी पुलिसवाला रखने की छूट मिले जो किसी भी चोट्टे को पकड़ कर ठुकाई कर सके। सच कह रहा हँू, थाना कचहरी जेल के लिये कोई लफड़े-टंटे ही ना बचें, आदमी वहीं बीच बाज़ार में सुधर जाए। देश में इन लघु यंत्र क्रांतियों की सख्त दरकार है।
तराजूक्रान्ति तो करनी ही होगी।
जवाब देंहटाएंआप तो महान क्रांतिकारी निकले!!
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है.
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