//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
ज़िन्दगी भर घास छीली, अब जाकर मेहनत सफल हुई, भैयाजी ‘मनीस्टर’ बन गए। हमने अपनी पूरी जिन्दगानी
भैयाजी की चम्मचगिरी में स्वाहा कर दी। जहाँ- जहाँ भैयाजी रहे, हम उनकी फटी चप्पल की नाई
उनके पाँवों से चिपटे रहे, जब-जब भैयाजी ने आवाज लगाई, हमने भैयाजी के चरणों के नीचे अपने
पलक-पॉवड़े बिछा दिये, और जब-जब भैयाजी ने अपनी बैल सी गरदन उठाकर ऊपर की ओर ताका, हम झट से उनके लिए पोर्टेबल
सीढ़ी बन गए। आखिरकार बरसों-बरस की कड़ी तपस्या और संघर्ष आखिर रंग लाया, भैयाजी ‘मनीस्टर’ बन ही गए।
भैयाजी जब टाकीज़ में टिकटों की ब्लेकमेलिंग
किया करते थे, हम उनके चम्मच थे। भैयाजी जब मुन्सीपाल्टी में राशनकार्ड, जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने
की दलाली करते थे, हम उन के चम्मच थे, भैयाजी जब कलेक्टरी में जाति प्रमाणपत्र, मूल निवासी प्रमाणपत्र,
बन्दूक के लायसेंस
बनवाने की दलाली करते थे, हम उनके चम्मच थे, भैयाजी जब आर.टी.ओ. में लायसेंस परमिट की दलाली में आए,
हमने उनका तन-मन से
साथ दिया। भैया जी जब राष्ट्रीय-अन्तर्राट्रीय स्तर के सौदे पटाने लगे, हमने उनकी सफल पीए गिरी की। बदले में भैयाजी ने जो भी
‘धन’
दिया हमने भगवान का
प्रसाद समझकर जेब में रख लिया। भैयाजी की कृपा से मिली इसी खुरचन को जमा कर-कर के इस
गुलाम ने प्रापर्टी की दलाली का यह छोटा सा बिजनेस प्रारम्भ किया। अब चूँकि भैयाजी
‘मनीस्टर’
बन गए हैं तो अब हमें
यह दल्लेगिरी करने की कोई ज़रूरत ही नहीं है। हमारी सामाजिक-राजनैतिक जिम्मेदारियाँ
इतनी बढ़ गई हैं कि क्या बतावे। अब हम भी अपना यह छोटा सा कारोबार मंथली के रेट से किसी
को सौंप कर भैयाजी के साथ-साथ देश की सेवा के लिए मैदान में उतरने वाले हैं।
दलाली, पार्षदी, चेयरमेनी, विधायकी आदि-आदि तरक्की की
सीढ़ियों पर भी हमारे सिर पर कुछ कम काम नहीं थे, सारे दंद-फंद हम ही को सम्हालना पड़ते
थे। अब तो भैयाजी चूँकि पहली बार ‘मनीस्टर’ बने हैं तो हमें तो सॉस लेने
की फुरसत मिलने वाली नहीं है। भैयाजी का सच्चा चम्मच साबित होने की परीक्षा सही मायनों
में तो अब शुरू हुई है। चमचों की भीड़ में एक सफल चमचा बनकर उभरना कोई मामूली बात नहीं
है, एड़ी चोटी
के बीच का जोर लगाकर दम साधे रहना पड़ता है। कौन आकर खो कर जाएगा कोई भरोसा नहीं रहता।
लायसेंस, कोटा, परमिट, टेन्डर, ट्रांसफर-पोस्टिंग-एपाइंटमेंट,
और न जाने क्या-क्या।
रात-दिन बस काम ही काम। इस सबमें भैयाजी की फिक्सिंग आखिर हमी तो करवाएँगे। उसके बाद
लेन-देन का प्रापर हिसाब रखना, प्रापर्टी, इन्वेस्टमेंट, नईं-नईं बिजनेस डील, पार्टनरशिप, शेयर-डिबेंचर, इत्यादि-इत्यादि मामलों की
पकड़ उस ‘गधे’
को तो बिल्कुल ही नहीं
है, वह सब हमको
ही तो लुक आफ्टर करना पडे़गा।
सबसे बड़ी
समस्या यह है कि समय बहुत कम बचा है, और काम बहुत पड़ा है। साल डेढ़
साल के लिए कोई ‘मनीस्टर’ बने तो
चाहे कितने हाथ-पैर मार ले, आखिर क्या
उखाड़ लेगा! और फिर, भैयाजी
की किस्मत बहुत ही खराब है, क्योंकि
उनके ‘मनीस्टर’ बनने से
पहले ही देश में सारे बड़े-बडे़ घोटाले हो चुके हैं अब भैयाजी को करने के लिए बचा ही
क्या है। मगर फिर भी हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि भैयाजी जैसी शातिर प्रतिभाएँ
हाथ पर हाथ धरे बैठने के लिए नहीं पैदा होती हैं। कुछ न कुछ कहीं न कहीं से भैयाजी
कूट ही लेंगे। भैयाजी जैसा काबिल ‘मनीस्टर’ है तो अपनी
तो पौ-बारह हो गई, अपन को
कौन रोक सकता है बहती गंगा में हाथ धोने से।
अब भी सेवा करेंगे।
जवाब देंहटाएंमिनिस्टरों की काबिलियत में कोई शक नहीं रह गया है ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य .... ऐसे ही थोड़े न चमचे बने थे ।
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