//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
पुराने ज़माने में लोग ऊँचे चरित्र वालों से अपने
निकट रिश्तों का बखान कर-कर के अपना ‘सिक्का’ जमाते थे। अवश्य ही राजा हरीशचन्द्र के वंशजों ने कई
पीढ़ियों तक यही किया होगा। अब माहौल बदल गया है। अब कुख्यात लोगों से निकटता होना ‘महानता’ की बात हो गई है और हरीशचन्द्राई ‘बदनामी’ का सबब बन गई है।
शहर के कुछ बिल्डरों पर इन्कमटैक्स का छापा पडा।
मार्निंग वॉक पर लोग अपना कद बढ़ा रहे हैं। कोई बोला-‘‘ इन्कमटैक्स व़ालों को तो अभी पता चला, हमें पहले से ही पता था कि इनके पास बहुत माल है!
हमारे तो बड़े करीबी हैं! हमारी मौसी की सास की ननद के सगे देवर के लड़के होते हैं।
बिल्कुल घर जैसी बात है।’’ दूसरा कह रहा है-‘‘ अब क्या बताएँ! जब कुछ नहीं थे तब से जानते हैं। फटी
चप्पल पहनकर आते थे हमारे पास। आज भी बहुत मानते हैं।’’ तीसरा कह रहा है-‘‘बड़े सज्जन हैं। हमने तो उन्हीं से फ्लेट लिया है। लिया क्या ज़बरदस्ती थमा दिया
उन्होंने। कहने लगे करोड़ों की प्रापर्टी दे रहा हूँ, याद करोगे। भाई साहब से नीचे बात नहीं करते। जब भी मिलते हैं ज़रूर पूछते
हैं-कैसे हैं भाई साहब?’’ सज्जन बेचारा,
इन्कमटैक्स की चोरी कर मुँह छुपाता घूम रहा है।
साहब व्यापम घोटाले में धरे गए हैं। जानने वाले उनके
प्रभाव से अपना प्रभामंडल विस्तृत करने की कोशिश कर रहे हैं। ‘‘दम है उस आदमी में। कुछ नहीं बिगड़ने वाला। हमारी तो
दाँत काटी रोटी रही है। हमसे भी बोले थे कोई हो तो बताओ। डाक्टर-इन्जीनियर जो
कहोगे बनवा देंगे। लाख-दो-लाख कम में काम करवा देंगे। बल्कि वे तो बोल रहे थे
तुम्हें भी कमवा देंगे। हमने कहा-आपका आशीर्वाद बना रहे बस और क्या।’’ दूसरा शेखी मार रहा है-‘‘ बदमाश तो वो पहले से था! साथ गुल्ली-डंडा खेलते थे।
अपने काम को कभी मना नहीं किया। आज भी अगर जेल में जाकर मिलूँ तो ज़रूर कहेगा-पहले
ही कही थी बिल्लू, काम करवा ले, पर चिन्ता मति करियों चुटकी बजाते ही बाहर आ जाएंगे।
साहब बेचारे चुटकी बजा बजा कर थक गए हैं, बज ही नहीं पा रही है। जमानत तक नहीं हो रही।
बलात्कारी हैं, मगर शहर के बड़े आदमी हैं। लोगों का अंदाज़ देखिए-‘‘जब चाहे फाइव स्टार होटल में बड़ी से बड़ी मॉडल को
हायर कर सकता है कम्बख्त। पता नहीं क्या सूझी बंदे को, नौकरानी की लड़की से ही जा चिपटा। हम तो बहुत साथ रहे
हैं उसके। अच्छे से जानते हैं। बहुत रंगरेलियाँ कि पट्ठे ने, मगर मजाल है जो कभी कोई लोचा हुआ हो। दूसरा कैसे चुप
रह सकता था, बोला- अरे एम.कॉम. में
बंदा मेरी नकल मार कर पास हुआ है। बड़ा आदमी बन गया, चरित्र में मगर है वैसा ही संत का संत। यह केस पता नहीं कैसे गले पड़ गया।
सेटिंग नहीं कर पाया बेचारा।‘‘ संत, जेल में बंद, अदालत में अपनी पेशी का इंतज़ार कर रहा है।
ईमानदारी पर अडिग रहने के कारण बार-बार ट्रांसफर, सस्पेंशन झेलने वालों के हाल देखें, सगे रिश्तेदार बातें करते हुए मिल जाएंगे-‘‘बेवकूफ हैं साले! अरे ज़माने के हिसाब से चलना चाहिए।
हमने तो कोई रिश्ता ही नहीं रखा जबसे उन्होंने दहेज लेने से मना कर दिया था। कभी
कोई काम लेकर जाओ तो टका सा जवाब दे देते है। न खाते हैं न खाने देते हैं। हमने भी
कह दिया एक दिन, भाड़ में जाओ, थूकने भी नहीं आएंगे कभी चौखट पर।
कहावत है, बदनाम हैं तो क्या, नाम तो है। उनके नाम से
हम भी महान हो लें तो क्या हर्ज़ है! ईमानदारों को तो मेडल मिलने से रहे, हमें क्या मिलेगा।
bahut badhiyaan aalekh.
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