//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
कुछ समय पहले चीनी राष्ट्रपति के साथ आए
महत्वाकांक्षी चीनी व्यापारियों और महत्वाकांक्षा में उनके भी बाप भारतीय
व्यवसायियों के बीच व्यापार संतुलन कायम करने की दृष्टि से अहमदाबाद में एक
व्यापार बैठक का आयोजन हुआ, जिसमें एक-दूसरे के बाज़ारों में घुसने के उपायों पर गहन
चर्चा की जाना थी।
बैठक के पूर्व खान-पान सेशन में खमण-ढोकला, खाखरे, फाफडे, और तमाम गुजराती खानों
और पकवानों की बारिश सी चीनियों पर करते हुए हलवाइयों, मावा-मिठाई और फरसाण
विक्रेताओं ने प्रश्नवाचक दृष्टि से चीनियों की ओर ताका ही था कि चीनी उद्यमियों
ने उनका इरादा भाँपकर सभी को झटका सा देते हुए कहा -‘‘देखिए, यदि आप लोग सोच रहे हैं कि हम
आपको चीन के चौक-चौराहों पर इसी खमण-ढोकला, खाखरे, फाफडे, और तमाम गुजराती खानों के ठेले
लगाने की इजाज़त दे देंगे तो आप गलतफहमी में हैं। हम चीनी जनता के नाजुक पेट की
कीमत पर धंधा करने की इजाज़त क़तई नहीं दे सकते।’’
मामला बिगड़ते देख हलवाइयों के प्रतिनिधियों ने
चीनियों का पटाते हुए कहा-‘‘देखो भाईसाहब, हमारा शोध एवं अनुसंधान काफी विकसित है। हमने चीनी
खाद्य पदार्थों को भारतीय स्टाइल में बनाने की विधियाँ खोज निकाली हैं, हम वही सब बेच कर गुज़ारा
कर लेंगे। आप तो बस इजाज़त भर दे दीजिए। आप कहेंगे तो हम अपने अनुसंधानकर्ताओं को
भारतीय आयटम चीनी स्टाइल में बनाने की विधियाँ खोजने में भी लगा देंगे। हाजमोला और
पचनोल जैसे प्रोडक्ट्स भी थोक में निर्यात करेंगे जिससे खाखरे-फाफड़े पचाने में
सुविधा होगी।
इधर खेल-खिलौने, प्लास्टिक आयटम्स और
इलेक्ट्रॉनिक गजेट्स बनाने वाले उद्यमी सुबह से ताक में बैठे थे कि मौका मिले तो
वे अपनी बात चीनियों के सामने खुल कर रख सकें। जैसे ही उन्हें मौका मिला उन्होंने
अपनी अटैची खोलकर एक-एक कर सारा सामान वार्ता टेबल पर बिखरा दिया-‘‘ये देखिए, ये देखिए! हमारा सामान
क्या आपसे कमज़ोर है ? आपके खेल-खिलौनों और इलेक्ट्रॉनिक आयटमों से हमारा बाज़ार पटा हुआ है, हमें पाँव तक रखने की
जगह नहीं है। आपके चक्कर में हमारी लुटिया डूबी पड़ी है। हमें भी चीनी बाज़ार में
अपने आयटम लेकर कूँदने की इजाज़त मिलनी चाहिए।’’
एक चीनी बिजनेस ट्रायकून बोला- देखिए, यही तो समस्या है कि
आपके आयटम हमारे आयटमों से कमज़ोर नहीं हैं। आप भी घर ले जाते ही खराब हो जाने वाले
खिलौनों और इलेक्ट्रॉनिक आयटम्स का प्रचूर उत्पादन करने की क्षमता विकसित कीजिए
तभी हमारे बाज़ार में खप पाएँगे। और ये गारन्टी-वारन्टी का लफड़ा भूलना होगा! यूँ
साल-साल, छः-छः
महीने की गारन्टी देते फिरोगे तो कर लिया धंधा। हमारी तरह घटिया सामान बनाइये,
मिट्टी के मोल
बेचना सीखिए, हम आपको निर्यात की सुविधा दे देंगे।’’
भारतीय उद्यमी बोल उठे-‘‘श्रीमान जी, फिर तो आपके देश में
हमें कोई खरीदार नहीं मिलने वाला। हमारे देश में मिट्टी काफी महँगी होती है।’’
दवा लॉबी के लोग उठ खड़े हुए और कहने लग-‘‘हमें भी कुछ मौका दीजिए
हुज़ूर, हमें
अमरीकी मल्टीनेशनल वालों ने तबाह कर रखा है।’’ इस पर एक चीनी प्रतिनिधि बोला-‘‘तुम तो बैठ ही जाओ। एक
तो नकली दवाइयाँ बेचते हो वो भी इतनी महँगी कि चीनी आदमी तो रेट सुनते ही बेहोश
होकर गिर पड़े। क्या दवा की जगह सोना-चांदी भरते हो रैपर में, या हीरे-जवाहरातों से
केप्सूल भरवाते हो ?’’
दवा लॉबी के प्रतिनिधि का देश प्रेम जाग गया। वह
चीखता हुआ बोला-‘‘ऐ चीनी, फालतू बकवास करने का नई! कौन बे कहता है हम नकली दवाएँ बेचते हैं ? तुम्हारे बाप ने भी कभी
खाईं हो दवाई तो जानो! एकूपंचर, एकूप्रेशर की सूईयाँ घुसेड़ने के अलावा तुम्हें आता क्या है।
बड़े आए व्यापार समझौता करने वाले, तुम्हारे पिताजी ने भी कभी किया है समझौता?’’
चीनी व्यापारी भी हक्का-बक्का रह गए। हो-हल्ला
मचना शुरू हो गया। भारतीयों को तो मेज-कुर्सी उठा-उठाकर फेंकने, माइक उखाड़ने का
काफी ज्ञान था सो उन्होंने अपने इस हुनर का इस्तेमाल भी किया। चीनियों ने टेबल
के नीचे छुप-छुप कर अपनी जान बचाई। हुड़दंगलीला के बावजूद भारतीय पान-गुटखा-सिगरेट
बनाने वाले अपने-अपने आयटम चीन में खपाने की जुगाड़ में आशान्वित से बैठे थे। गांजा,
भाँग चरस, देसी ठर्रा आदि-आदि बनाने
वालों को भी चीनियों के सामने प्रस्ताव रखने का मौका मिलने की पूरी संभावना लग रही
थी, वे भी डटे हुए थे। उधर अपना एक मूँफली वाला भी बालू रेत की भुनी मूँफलियों का
थैला लटकाए उत्साह भरी निगाहों से चीनियों को ताकता हुआ सोच रहा था-‘‘ बस एक बार उसे चीन में घुसने का मौका मिल जाए, सारे चीन को मुँफलियाँ खिला-खिलाकर बरबाद न कर
दूँ तो मेरा नाम नहीं।
मूँफली व़ाले का नम्बर आया या नहीं, पता नहीं। फुटपाथ
छाप रेडीमेड कपड़े वालों, जूते-चप्पल के साथ-साथ झाड़ू, हाथ के पंखे, दीया-बाती, मटके व़ाले भी अपनी बारी
के इंतज़ार में लाइन लगाए बाहर बैठे हुए थे, जाने कब तक बैठे रहे। इस कदर
मारा-मारी थी कि पूछिए मत।
पता नहीं बेचारे चीनियों को टेबलों के नीचे से
निकलकर चीनी माल भारतीय बाज़ार में उतारने के अपने महत्वाकांक्षी प्रस्ताव पेश
करने का मौका मिला या नहीं, या वे जान बचाने के लिए वैसे ही भारतीय टेबलों के नीचे
छुपे रहे।
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आज जनसंदेश टाइम्स लखनऊ में प्रकाशित
सबको अपना माल ठिकाने लगाने की चिंता हैं ... जुगत भिड़ाने में कोई काम नहीं ...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति
शुक्रिया कविता जी।
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