//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
मानव सभ्यता के इतिहास में मनुष्य की जो सबसे बड़ी उपलब्धि है वह है आधुनिक
चिकित्सा विज्ञान। पश्चिमी चिकित्सा विज्ञानियों ने यदि घर के सारे काम छोड़कर शोध
एवं अनुसंधान नहीं किया होता, नए-नए आधुनिक
चिकित्सकीय उपकरण, पैथोलॉजिकल टेस्ट
प्रणालियाँ, दवा-गोलियाँ,
इन्जेक्शन ईजाद नहीं किये होते तो हज़ारों अनोखी
बीमारियों से ग्रस्त हमारे देश के लाखों ‘समर्पित‘ मरीज़, हमारे ईश्वर तुल्य डाक्टरों, पैथॉलॉजी मालिकों और दवा कम्पनियों के सालाना
टर्नओव्हर में बिना कोई आर्थिक योगदान दिए ही मर जाते।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की बदौलत आज डॉक्टरों के पास मर्ज़ और मरीज़ की जॉच और
विश्लेषण के लिए लघुतम से लेकर दैत्य आकार के इतने उपकरण और मशीनें हैं कि उन्हें
अब केवल मरीज़ों की फीस और दवा गोलियों पर मिले चुटकी भर कमीशन पर ही निर्भर नहीं
रहना पड़ता। नाना प्रकार के पैथॉलॉजी टेस्ट, एक्सरे, सीटी स्केन,
एम.आर.आई, कलर डाप्लर आदि-आदि एक से एक महँगी जाँचों के कमीशन से घर
बहुत अच्छे से चल जाता है। कमाई की ज्यादा ‘हाय-हाय’ होने पर डाकसाब
लोग खुद अपनी निजी पैथॉलॉजी लैब, स्केन सेन्टर,
दवा की दुकान इत्यादि खोलकर बैठने के लिए
स्वतंत्र हैं और मरीज़ों को दुनिया भर की जाँचें, दवा-गोलियाँ लिखकर अपना वित्तीय घाटा पूरा करने के ईश्वर
प्रदत्त अधिकार का सजगतापूर्वक लाभ उठाने के लिए भी बेहद प्रतिबद्ध हैं।
बड़े-बड़े प्रायवेट अस्पतालों के मालिक रोज़ सुबह उठकर दुनिया के हर कोने की और
सरपट नज़र दौड़ाते हैं, ताकि यदि कहीं भी
कोई नया चिकित्सकीय उपकरण विकसित हुआ हो तो तुरंत बैंक से लोन लेकर उसे अपने
अस्पताल में लगवा लें और जल्दी से जल्दी जाल में आ फँसे मरीज़ों की जेब से बैंक की
किश्तों की वसूली शुरू कर दें। यूँ अपने देश में तो कभी भूले से भी कोई चिकित्सा
उपकरण विकसित होता नहीं, अगर हो भी जाए तो
उसे कोई खरीदेगा यह कतई संभव नहीं। क्योंकि देशी उपकरणों पर न तो कोई मरीज़ भरोसा
करता है और न ही उससे ज़्यादा तादात में पैसे झड़ाए जा सकते हैं। अस्पताल में नाहक
जगह घेरकर रखने का क्या फायदा। उससे अच्छा एक डीलक्स दड़बा बनाकर कोई पैसे वाला
मरीज़ अटकाकर रखना ज़्यादा फायदेमंद होगा!
सीटी स्केन, एम.आर.आई अथवा ‘कर्कट-रक्त कर्कट’, ‘एड्स’ इत्यादि राजसी
रोगों से संबंधित महँगी जाँच एवं परीक्षणों संबंधी मशीनों की ईजाद करके तो
चिकित्सा विज्ञान ने जैसे अर्थक्रांति ही ला दी है। एक ही झटके में मरीज़ को
हज़ारों-लाखों रुपए का फटका लगाकर पौ-बारह हो जाती है। पीड़ित मानवता की सेवा की
नौटंकी में दिन भर सौ-पचास मरीज देखकर टाइम खोटी करने की बजाए दो-चार मरीज़ों को
भारी-भरकम टेस्ट लिख दो, काम खत्म। दिन भर
का कोटा एक घंटे में ही पूरा हो जाएगा। बाकी समय में अपने दूसरे पार्ट टाइम धंधों
पर ध्यान केन्द्रित करो, जिससे एक अस्पताल
के चार अस्पताल बनाने का रास्ता खुले और अच्छे दिन आएँ।
इधर, आधुनिक चिकित्सा शास्त्र
की दृष्टि से निपट अनपढ़ और गँवार मरीज़ों की जेब से पैसा उलीचने की अन्य आधुनिक
विधियाँ भी हमारे चतुर डाक्टर अविष्कारकों ने ईजाद कर रखी हैं। जैसे पेट दर्द के
मरीज़ को फौरन सोनाग्राफी की सलाह देना भले ही वह ‘अफारे’ के कारण दर्द कर
रहा हो और आयोडेक्स स्तर की मोच खाए पैर के लिए बिना बात डिजिटल एक्सरे, सीटी स्केन या एम.आर.आई करवाने के लिए दौड़ाना।
सर दर्द के मामले में दिमाग में क्लॉटिंग
का डर दिखाकर जबरदस्ती अस्पताल में भरती करवा लेना और फिर तेज गति से फीस का मीटर
दौड़ाकर मरीज़ की जेब यूँ खाली कर देना कि शातिर से शातिर जेबकतरा भी अवाक होकर
देखता रह जाए और अफसोस के मारे दीवारों पर सर मारता फिरे कि हाय कम्बख्त जेबकतरा
क्यों बन गए! डॉक्टर बन जाते तो जेबकतरई के पेशे के साथ न्याय कर लेते। अगर मरीज़
कहीं ओर से टेस्ट-परीक्षण करवा कर कमीशन डुबा आया हो तो उसे बाप के हक से डाँटकर
उसकी लू उतारना भी डाक्टरी पेशे का एक महत्वपूर्ण नुस्खा है जिसे अपनाकर डाकसाब
मरीज़ को अंटे में ले लेते हैं ताकि फिर अपनी पसंदीदा ‘दुकान’ से दोबारा जाँचें
करवा लाने का हुक्म देकर मरीज के अपने अस्पताल में घुस आने का टैक्स वसूला जा सके।
हमारी चिकित्सा व्यवस्था में ऐसे और भी सैकड़ों तौर-तरीके, ‘समानान्तर’ चिकित्सा पद्यतियों
के रूप में प्रचलित हैं जिनके निरन्तर प्रयोग से हमारा चिकित्सा विज्ञान दिनों-दिन
उन्नत होता जा रहा है। हमारे डॉक्टर लोग पता नहीं किस अज्ञात यूनीवर्सिटी से इन
अद्भत् चिकित्सा पद्यतियों की सघन ट्रेनिंग लेकर मरीज़ों का सांगोपांग उत्थान करने
के लिए आते ही चले जा रहे हैं आते ही चले जा रहे हैं। इन युगपुरुषों के उजले
सौभाग्य से देश में मरीज़ भी दिन पर दिन बढ़ते ही जा रहे हैं, बढते ही जा रहे हैं।
चिकित्सा विज्ञान ने यदि ये तमाम आधुनिक मशीनें-उपकरण, जॉच-परीक्षण और ठगने की अत्याधुनिक विधियाँ ईजाद न की होती
तो बेचारे भारतीय डाक्टरों को तो बड़े संकटों का सामना करना पड़ता। केवल फीस से तो
बड़ी-बड़ी कोठियाँ बनाई जाना असंभव होता और बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमने का सपना भी
कम्बख्त साकार नहीं हो पाता। कौन फिर उन्हें बड़ा डाक्टर मानने को तैयार होता?
‘समानान्तर’ चिकित्सा पद्यति
में दवा-गोलियों का भी बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। पारखी डॉक्टर साहब मरीज़ के चेम्बर
में घुसते ही मन ही मन तय कर लेते हैं कि इसे पाव भर दवा खिलाना है या आधा किलो।
फिर मरीज के चेकप का नाटक करते-करते वे बड़ी सफाई से मरीज़ की जेब का भी चेकप कर
लेते हैं कि उसमें कुछ है भी या यू ही छूछा चला आया! और फिर अपने इस
सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के हिसाब से उसे कभी-कभी किलो-दो किलो वज़न की महँगी दवाएँ
भी लिख मारते हैं ताकि फिर उसी हिसाब से कमीशन भी तगड़ा पक सके। सस्ती दवाएँ लिखकर
दस-बीस रूपए के कमीशन के लिए कोई डाक्टर अपना ईमान नहीं बिगाड़ता। दवाइयाँ महँगी हो
और दो-चार पत्तों में ही ध्येय अच्छे से सध जाए डाक्टर साहब का यही सद्प्रयास होता
है। दवा कम्पनियाँ भी इस मामले में किसी डाक्टर को निराश होने का कोई मौका नहीं
देती। कीमतों को हमेशा ऊपर की दिशा में ही रखती हैं ताकि डाक्टरों को सम्मानपूर्ण
कमीशन दिये जा सकें। कोई दवा दिन में तीन बार कोई चार बार, कोई खाने के पहले कोई खाने के बाद, कोई सोने के पहले कोई सोने के बाद, कोई दवा गरम पानी से तो कोई ठंडे पानी से कोई दूध से तो कोई
जूस से, आदि-आदि चकरघिन्नी कर
देने वाले दवा सेवन के गूढ़ उपक्रम को याद रखने की कोशिश में मरीज अपना मर्ज़ ही भूल
जाता है। बीमारियों से त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे मानव जीवन में चिकित्सा विज्ञान
का इससे बड़ा योगदान और क्या हो सकता है।
बहरहाल, ठग विद्या हमारे
देश की एक लोकप्रिय प्राचीन विद्या है, परन्तु इसका विकास लम्बे समय से अवरुद्ध पड़ा हुआ था। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान
की तमाम खोजें और उपलब्धियाँ, दवा-दारू इत्यादि
सब कुछ इस विद्या के पुनर्जीवन एवं विकास के लिए किसी वरदान से कम नहीं। सात
समुन्दर पार करके यह सब आधुनिक ज्ञान-विज्ञान यदि हम तक न पहुँचता तो हम तो पुरानी
बाबा आदम के ज़माने की विधियों से ही मरीज़ों को ठगते रहते। ठगने की नई-नई आधुनिक
विधियाँ तो कभी जान ही न पाते। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने हमारी प्राचीन ठग
विद्या में नए प्राण फूँक दिये हैं और इस प्राचीन ठग विद्या ने भी आधुनिक चिकित्सा
विज्ञान को नई बुलंदियों पर पहुँचा दिया है। समझ में नहीं आ रहा है कि आधुनिक
चिकित्सा विज्ञान को सलाम करें या प्राचीन ठग विद्या को।
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