शनिवार, 25 अप्रैल 2020

कोराना काल का रहस्‍य


व्यंग्य - प्रमोद ताम्बट

महाशक्तियों ने दुनिया भर में नरसंहार के लिए एक से एक खतरनाक हथियार, गोला-बारूद, और परमाणु असलहे ईजाद किये हैं और न केवल दुनिया के कई मुल्कों को आँखें दिखाई हैं बल्कि कमज़ोर मुल्कों को नेस्तोनाबूद भी किया है। मगर अब, एक अदद तुच्छ वायरस ने उन तमाम महाशक्तियों को उनकी औकात दिखा दी है। बड़े-बड़े मुल्क आज भीगी बिल्ली बने दड़बों में छुपे बैठे हैं। हवा में उड़ते फिरने वालों को कोरोना ने जमीन पर ला दिया है।
इन बड़े-बड़े देशों के विध्ंवस योजनाकारों को आज ज़रूर नानी याद आ रही होगी। मगर वे अपनी नानी को याद करते हुए भी सिर्फ और सिर्फ अपने धंधे के ही बारे में सोच रहे होंगे। इतना आसान था दुनिया को डर बेचना। एक अदद पिद्दी से वायरस का डर दिखाकर भी वह सब किया जा सकता था जो इतने सालों तक परमाणु हथियार, गाइडेड मिसाइलें और राकेश लाँचर दिखा-दिखाकर किया। एक कॉच की शीशी में कोरोना मरीज़ का थूक डालकर सिम्पल दीवाली वाले राकेट में बांध लेते, और उसी को किसी भी मुल्क की तरफ मुँह करके माचिस दिखा-दिखाकर धमकियाँ देते रहते। साम्राज्यवाद का बड़ा से बड़ा दुश्मन भी पॉवों में आकर लोट लगा लेता। अस्त्र-शस्त्रों पर फालतू अरबों-खरबों डालर का इनवेस्टमेंट किया। चीन ने अनजाने में ही सही उन्हें सीखा दिया कि मुफ्त में धंधा कैसे किया जाना चाहिए।
चीन की प्लानिंग हम भारतीयों के अलावा कौन समझ सकता है। उसने ज़रूर भारत को ब्लेकमेल करने, डरा-धमकाकर पैसा ऐठने की नियत से अपनी वुहान लैब में कोरोना का मास प्रोडक्शन किया होगा। मगर इससे पहले कि वे हमारी गली-गली में बिकने वाली चाइनीज चीज़ों में कोरोना चिपकाकर यहाँ भेज पाते कोरोना का वायरस डिबिया में से निकल भागा, और चीन में ही पसरकर रायता फैला दिया। 
कोरोना के कारण दुनिया के तमाम बड़े देशों की अर्थ व्यवस्था डूबने की कगार पर है। मगर हम सिरमौर बन कर उभरेंगे। कैसे? यही तो कोरोना काल का सबसे बड़ा रहस्य है जो सिर्फ काले चोर को ही पता है।          

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