//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
अभी-अभी खबर
मिली है कि दिल्ली में वरिष्ठ बलात्कारियों की एक गुप्त मीटिंग हुई है। इस क्लोज़
मीटिंग में बड़ी संख्या में अनुभवी बलात्कारियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और हाल
ही में चलती बस में हुई सामुहिक बलात्कार की एक घटना की ञृटियों-खामियों पर गम्भीरतापूर्वक
विचार विमर्श किया। बलात्कारियों ने सबसे पहले अपने उन बलात्कारी साथियों को
सफलतापूर्वक पकड़ लिए जाने की आश्चर्यजनक घटना पर पुलिस वालों की कड़े शब्दों में
निन्दा एवं भर्त्सना की उसके बाद बारी-बारी से अपनी सामाजिक चिन्ताएँ साझा की।
बलात्कारियों
के नेता ने मीटिंग में जबरदस्त हुंकार भरते हुए कहा कि- हम उन नपुंसकों एवं
नामर्दों की र्इंट से ईंट बजा कर रख देंगे जो हमें हमारे जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित करना चाहते हैं। उन्होंने
उपस्थिति बलात्कारियों के समक्ष एक क्रांतिकारी नारा दिया कि - बलात्कार हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे हमसे कोई नहीं छीन सकता।
नेता ने इस नारे के नीचे सभी बलात्कारियों को एक जुट होने का फतवा जारी
किया।
नेता के भाषण
से उत्साहित होकर एक बलात्कारी जो मुँह ढापे चुपचाप सभा में बैठा था अचानक चौक
कर आश्चर्य से चिल्लाया- अच्छा, यह बात हमें तो पता ही नहीं थी, हम फालतू में अपना
मुँह छुपाए फिर रहे हैं। कोई चीज़ जन्मसिद्ध
अधिकार हो तो फिर खामोखां डरने की क्या बात है। इससे पहले कि ये शरीफज़ादे एकजुट हो
जाएँ हम सबको एकजुट होना ज़रूरी है।
एक अन्य
बलात्कारी जिसकी आँखों में धन से ज़्यादा वासना की भूख दिखाई दे रही थी उत्तेजित
होकर चीखने लगा- इन कम्बख्तों को आईन-कानून का कोई खयाल ही नहीं है। अरे हम ही
अगर हाथ पर हाथ बैठे रहेंगे तो तुम क्या अपने कानून की किताबों को बैठकर चाटोगे ?
जब बलात्कारियों के खिलाफ बढ़िया कानून बने हुए हैं तो फिर हमें स्वतंञतापूर्वक बलात्कार
भी तो करने दो। तभी तो पता चलेगा कि कानूनों का पालन होता भी है या नहीं होता।
हमें अपना काम करने की स्वतंञता होना चाहिए कानून तो हमेशा अपना काम करता ही
है।
एक और बलात्कारी
उठकर रोष प्रकट करने लगा- ये लो हमें कमज़ोर समझ रहे हैं मिञों, तभी तो फाँसी दो
फाँसी दो की रट लगाए बैठे हैं, जैसे हमारी कोई सुनेगा ही नहीं। फिर किस-किस को
फाँसी दोगे बाबा ! हम तो घर-घर में घात लगाए बैठे हैं, एक ढूँढ़ोगे
तो हज़ार की तादात में मिलेंगे, कर लो क्या करते हो।
एक जवान
बलात्कारी जिसे इस क्षेञ में बहुत ज़्यादा अनुभव नहीं था उठकर बोलने लगा- आप सब
अनुभवी बलात्कारियों से निवेदन है कि हम जैसों के लिए भी कुछ करें जो बस आँखों ही
से बलात्कार कर लेने के लिए मजबूर हैं ज़्यादा हुआ तो फब्तियों से बलात्कार कर
लेते हैं या सीटियाँ से। यह भी कोई जि़न्दगानी है, कानून-पुलिस के डर के मारे
इससे ज़्यादा कुछ कर ही ना पाओ। थोड़ा और खुलापन देश में आना चाहिए ताकि हम भी ठीक
से बलात्कारियों की जमात में गिने जा सकें।
और इसके बाद इन
बलात्कारियों ने देश भर में
आम जनसाधारण एवं महिलाओं द्वारा बलात्कारियों को फाँसी की सजा की की जा रही माँग
के विरुद्ध एकजुट होने
अपने हितों की रक्षा के लिए मानवाधिकार संगठनों की लाँबिंग करने एवं मानवाधिकार
आयोग के समक्ष अपने बुनियादी अधिकारों की रक्षा की गुहार लगाने के निर्णय का सामुहिक
प्रस्ताव पास किया, एवं प्रधानमंञी से मिलकर अपना चार्टर ऑफ डिमांड उनके समक्ष प्रस्तुत
करने का सैंद्धांतिक निर्णय लिया। समझा जाता है कि बलात्कारियों को प्रधानमंञी
महोदय की चुप्पी से बहुत आशाएँ हैं। हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आज
नहीं तो कल अवश्य बलात्कारियों की ही सुनी जाएगी और उनके बुनियादी अधिकारों की
रक्षा भी हो जाएगी, क्योंकि अपने देश का तो ऐसा है कि सीधे-साधे नागरिकों कि भले
खटिया खड़ी हो जाए, मगर अपराधियों का बाल भी बांका नहीं होना चाहिए।
Nice post.
जवाब देंहटाएं... क्योंकि अपने देश का तो ऐसा है कि सीधे-साधे नागरिकों कि भले खटिया खड़ी हो जाए, मगर अपराधियों का बाल भी बांका नहीं होना चाहिए।
सुन्दर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंजारी रहिये,
बधाई !!
इतने गम्भीर मुद्दे पर यह व्यंग्य पढ़ने में अच्छा नहीं लगा...
जवाब देंहटाएंआजकल जो हालात हैं और रोज कहीं ना कहीं इस तरह की खबरें पढ़ने को मिलती हैं, मासूम बच्चियों का नहीं बख्शा जा रहा, बस गैंगरेप की शिकार पीड़िता अभी भी मौत से जंग लड़ रही है...उस समय यह व्यंग्य मन को दुखी कर गया...व्यंग्य में भी ओछी हरकत नहीं पढ़ी जा सकती....
माफ करिएगा
आपके व्यंग्य मुझे बहुत अच्छे लगते हैं...पर आज के लिए मुआफी...आज तारीफ नहीं...
करारा और धांसू व्यंग्य |
जवाब देंहटाएंइस मुद्दे पर सबसे बढ़िया व्यंग्य |
Gyan Darpan
वर्ष 2013 आपको सपरिवार शुभ एवं मंगलमय हो ।शासन,धन,ऐश्वर्य,बुद्धि मे शुद्ध-भाव फैलावे---विजय राजबली माथुर
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