//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
माई डियर वेलेन्टाइन,
फिर वो मनहूस दिन आ गया है जिस दिन
लाख एहतियात बरतने, लुकने-छुपने के बावजूद पिछले आठ बरस
से बिलानागा हम भारतीय संस्कृति के हाथों पिटते आ रहे हैं। तुम्हें याद होगा
जानेमन, कि पिछले उन आठ वेलेन्टाइन डेज़ में हमने तीन
बार सार्वजनिक पार्कों में थप्पड़ खाए, दो बार
महँगे रेस्टोरेंट से (आधा फास्ट फूड और कोक छोड़) मुँह छुपाकर भागे, दो बार कोतवाली में कान पकड़कर उठक-बैठक लगाने के बावजूद दो-दो
सौ रुपये की रिश्वत देकर छूटे और एक बार बिरला मंदिर की सीढ़ियों पर आधा घंटे तक
मुर्गा-मुर्गी बनाकर खड़े किये गए। मोहल्ले के बच्चे कम्बख़्त अब तक कुकुड़-कू,
कुकुड़-कू की आवाज़ निकाल कर चिढ़ाते हैं। प्रिये, इसलिए अब हमने कसम खा ली है कि भले ही सरकार हमें बन्दूक का
लायसेन्स बनवा दे, या मिलेट्री की सुरक्षा मुहैया करा
दे, भले ही अपोजिट पार्टी के गुंडे हाथों में
डंडे-झंडे लेकर हमारी रक्षा के लिए सड़कों पर उतर पड़ें, या अपने मम्मी-पापा ही पीछे खड़े होकर अपन को आशीर्वाद दें, कि मनाओं बेटा ‘वेलेन्टाइन डे’,
मगर हम वेलेन्टाइन डे पर किसी सूरत में घर से बाहर नहीं
निकलने वाले।
प्रिये, उस महान संत को क्या पता था कि वे
जिस ‘डे’ को दुनिया
की सबसे खूबसूरत नेमत के लिए मुकर्रर कर रहे हैं, भारतभूमि पर उसकी कैसी छिछालेदर होने वाली है। उन्हें अगर ज़रा भी अन्दाज़
होता कि इस पवित्र दिन हमारे देश में प्रेमी जोड़ों को जगह-जगह अपनी इज्ज़त का फालूदा
करवाना पडे़गा और पार्कों-उद्यानों नदी-तालाबों के मनोरम किनारों से चप्पल-जूते
छोड़कर भागना पड़ेगा तो वे वेलेन्टाइन डे को भारतभूमि पर न मनाने का उपदेश भी साथ ही
साथ दिये जाते। पता नहीं संत वेलेन्टाइन पहले हुए थे या मथुरा-वृन्दावन के
ग्वाले, मगर राधा-कृष्ण इस मामले में बड़े
सौभाग्यशाली कहे जा सकते हैं जो द्वापर में ही रासलीला रचाकर चले गए, इधर कलयुग तक अगर निकल आते तो मुन्सीपाल्टी के बाग-बगीचों में
उन बेचारों की क्या गत होती हम ही समझ सकते हैं।
प्रियतमें, तुम समझ रही हो ना कि आजकल का माहौल
कितना उजड्ड हो गया है। देश के पार्कों में लड़कियों के साथ खुले-आम छेड़-छाड़,
गुंडागर्दी बलात्कार की तो खुली छूट है, परन्तु प्रेम-विरहियों को मिलने की इजाज़त नहीं है। भारतीय
संस्कृति के रखवाले तब डंडा लेकर नहीं घूमते जब सड़क पर किसी अबला की इज्ज़त लुट रही
होती है, मगर तब वे कुकरमुत्तों की तरह निकल आते हैं
जब वेलेन्टाइन डे करीब आने लगता है।
प्रियतमा, आशा है तुम्हारा ब्लडप्रेशर नार्मल होगा, मेरे हाथ-पाँव भी अभी काँपना शुरू नहीं हुए हैं। फिर
भी तुम कहो तो वेलेन्टाइन डे के दिन हम कहीं चोरी-छुपे मिलने की बजाय किसी अच्छे
डाक्टर का एपाइंटमेंट लेकर कम्पलीट चेकप करा लेते हैं। दवा-गोली साथ में रहेगी तो
हौसला रहेगा। आओ इस बार हम घर में ही दुबक कर वेलेन्टाइन डे मना लें! तुम अपने घर
और मैं अपने, किसी को हवा भी नहीं लगेगी। मगर क्या भरोसा घर में
बैठे संस्कृति के रक्षक ही हमारी पिटाई कर दें तो फिर अपन क्या करेंगे!
ज़बरदस्त व्यंग्य है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर व्यंग प्रमोद जी
जवाब देंहटाएंशिशिर जैन
रोज रोज के चोचले, रोज दिया उस रोज |
जवाब देंहटाएंरोमांचित विनिमय बदन, लेकिन बाकी डोज |
लेकिन बाकी डोज, छुई उंगलियां परस्पर |
चाकलेट का स्वाद, तृप्त कर जाता अन्तर |
वायदा कारोबार, किन्तु तब हद हो जाती |
ज्यों आलिंगन बद्ध, टीम बजरंग सताती ||
Sahi Samay par yeh sateek Vyangya.
जवाब देंहटाएंवेला वेलंटाइनी, नौ सौ पापड़ बेल ।
जवाब देंहटाएंवेळी ढूँढी इक बला, बल्ले ठेलम-ठेल ।
बल्ले ठेलम-ठेल, बगीचे दो तन बैठे ।
बजरंगी के नाम, पहरुवे तन-तन ऐंठे।
ढर्रा छींटा-मार, हुवे न कभी दुकेला ।
भंडे खाए खार, भाड़ते प्यारी वेला ।।
karara vyangatmk prahar
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़ियाँ ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
एकदम सही चित्रण किया है आपने...
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभी
प्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है
प्यार के गीत जब गुनगुनाओगे तुम ,उस पल खार से प्यार पाओगे तुम
प्यार दौलत से मिलता नहीं है कभी ,प्यार पर हर किसी का अधिकार है
का करें, कुछ का प्रेम पिटे पिटे बढ़ने लगता है।
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