//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
होली के मौके पर वासंती फिज़ाओं में चारों ओर एक नारा
डूबने-उतराते लगता है- ‘होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है’। शहर भर
के हुड़दंगीलाल हुरियारे दूसरे तमाम होली-भीरू नर-नारियों को खुली चेतावनी सी देते
घूमते हैं कि- सुन लो भैया होली है, और भारतीय
संस्कृति ने हमें जन्मसिद्ध अधिकार दिया हुआ है, हम तुम्हारे मुँह पर पान की पीक थूक सकते हैं, मूत्र त्याग कर सकते हैं, कालिख, कीचड़-गंदगी का मोटा पलस्तर चढ़ा सकते हैं, तुम्हारे कपड़े फाड़कर दिगम्बर अवस्था में बदबू और संडांध भरे
गटर के मेनहोल में तुम्हें डुबकी लगवा सकते हैं, देसी ठर्रे की अख्खी बोतल चढ़ाकर तुम्हारी माँ-बहन एक कर सकते हैं, तुम साले क़तई बुरा नहीं मानना। जो तुमने बुरा मानने की जुर्रत
की तो फिर किसी अच्छे अस्थि विशेषज्ञ का नाम-पता और फीस की पूछताछ भी लगे हाथों कर
रखना, होली की पारम्परिक ‘छूट’ का फायदा उठाकर हम तुम्हारे
हाँथ-पाँव तोड़ने की क्रिया भी अंजाम दे सकते हैं।
खान्दानी आशिक मिज़ाज हुरियारों को होली का विशेष इंतज़ार रहता है। उनकी
पवित्र इच्छा रहा करती है कि उन्हें भँग की तरंग में दूसरों की बीवियों, बहन-बेटियों के तन पर रगड़-रगड़कर रंग-गुलाल लगाने की विशेष छूट
दी जाए और इस कृत्य को देखकर कोई भी इज्ज़तदार इंसान क़तई बुरा न माने। कुछ टपोरी
किस्म के अत्योत्साही बंदे साल भर होली का इंतजार ही इसलिए करते हैं कि ‘बुरा न मानो होली है’ की
सार्वजनिक अपील की आड़ में अपने प्रिय सामाजिक शत्रुओं की जम कर लू उतारने का मौका
मिले। किसी पर भयंकर कोटि के शाब्दिक भाले-बर्छियों की बौछार करने, किसी की छीछालेदर करने, या किसी की इज्ज़त का पंचनामा बनाने का इससे अच्छा मौका और कौन सा हो सकता
है। बीच चैराहे पर किसी की भी पगड़ी हवा में उछाल दो और धीरे से यह नारा छोड़ कर
चलते बनों -होली है भई होली है, बुरा न मानो होली
है।
अर्सा पहले शर्म लिहाज के युग में, भारतीयों के किसी भी छोटी-मोटी बात पर बुरा मानकर चुल्लू भर पानी में डूब
मरने के लिए दौड़ पड़ने का बड़ा जबरदस्त भय हुआ करता था, इसलिये ‘चोर’ को मुँह पर ‘चोर’ शब्द फेंककर मारने की बजाए लोग सब्र से साल भर होली की प्रतीक्षा करते थे
और चोर को अच्छी तरह से आगाह करने के बाद कि भई बुरा न मानना, होली है, उसे ‘चोर’ कह लिया करते थे।
इतने में ही अगला शर्म के मारे पानी-पानी हो जाता था और आत्महत्या करने पर उतारू
हो पड़ता था। मगर आजकल जमाना बदल गया है। प्रोफेशनल बेशर्मो से भरी इस दुनिया में
सचमुच बुरा मानने वालों का जबरदस्त टोटा है, आरोपों की भारी से भारी चार्जशीट पाकर भी कोई बुरा मानने का नाम नहीं
लेता। वक्त के तकाज़े का हवाला देकर किसी को बुरा मानने का मात्र अभिनय भर करने के
लिए कहा जाए तब भी वह बुरा नहीं मानेगा। बिजली के खंभों पर लाउड स्पीकर के चैंगे
लगाकर भी यदि आप ऐलानिया तौर पर चोर को ‘चोर’
सम्बोधित कर चिल्लाएंगे तब भी वह बुरा नहीं मानेगा। ‘होली’ का खास मौका हो
या रोज़मर्रा का कोई साधारण दिन, डाकू को डाकू
कहिये, ठग को ठग कहिये, जालसाज़-घोटालेबाज़ को जालसाज़-घोटालेबाज़ कहिये, कातिल को कातिल, बलात्कारी को
बलात्कारी कह दीजिए, वह बुरा मानने से रहा। बोल-बोल आपका
मुँह दुख जाएगा, आप मानसिक रूप से थक कर चूर हो
जाएंगे मगर फिर भी वह दाँत निपोरता आपके सामने खड़ा मुस्कुराता रहेगा। इतना ही नहीं,
वह पूरी शिद्दत से अपनी और भी दो-चार महान खूबियाँ का
बखान आपके सामने करके फिर आपसे कहेगा, हाँ अब
मेरी बुराई करो, मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानूँगा।
चरम भ्रष्टाचार के रंग में रंगे इस युग में आप रात-दिन भ्रष्टों के कान
में भ्रष्टाचार के भारी-भरकम आरोपों का पारायण करते रहिये मगर उनके कानों पर जूँ
भी रेंग जाए तो मजाल है। हाँ, यदि आप किसी राह
चलते आदमी को धोके से ‘ईमानदार’ कह दें तो बहुत संभव है कि वह आपके पीछे जूता लेकर दौड़ पड़े और मार-मार कर
आपकी टाट गंजी कर दे। इतना ही नहीं, हो सकता है अपनी
इस बेइज्जती के लिये वह आपको माननीय अदालत तक घसीट कर ले जाए और आप पर पाँच-दस लाख
का मानहानी का मुकदमा ठोक दे।
भारत जैसे प्रचंड लोकतांत्रिक देश में अगर कोई यूँ ही
बैठेठाले बुरा मानने लग पड़े तो उसे पागल कुत्ते का काटा मानकर तुरंत कुत्तों के
डाक्टर के पास ले जाया जाना चाहिए। जब हिस्ट्रीशीटर चोर-डाकू, ठग-धोखेबाज़ माफिया-बलात्कारी का तमगा छाती पर लटका होने के
बावजूद समाज में, घर-बाहर, राजनैतिक अखाड़ों, देश के शिखर
संस्थानों में बेशर्मों के लिए प्रचंड मान-सम्मान पाने की प्रचूर संभावनाएँ सामने
हिलोरें लेती रहतीं हों, तो फिर आखिर
क्यों कर कोई बिना मतलब बुरा मानता फिरेगा, फिर चाहे होली हो या और कोई दूसरा दिन!
'व्यंग्य' रूपी शस्त्र द्वारा 'सत्य'निरूपण करने का ढंग है यह।
जवाब देंहटाएंहोली मुबारक
अभी 'प्रहलाद' नहीं हुआ है अर्थात प्रजा का आह्लाद नहीं हुआ है.आह्लाद -खुशी -प्रसन्नता जनता को नसीब नहीं है.करों के भार से ,अपहरण -बलात्कार से,चोरी-डकैती ,लूट-मार से,जनता त्राही-त्राही कर रही है.आज फिर आवश्यकता है -'वराह अवतार' की .वराह=वर+अह =वर यानि अच्छा और अह यानी दिन .इस प्रकार वराह अवतार का मतलब है अच्छा दिन -समय आना.जब जनता जागरूक हो जाती है तो अच्छा समय (दिन) आता है और तभी 'प्रहलाद' का जन्म होता है अर्थात प्रजा का आह्लाद होता है =प्रजा की खुशी होती है.ऐसा होने पर ही हिरण्याक्ष तथा हिरण्य कश्यप का अंत हो जाता है अर्थात शोषण और उत्पीडन समाप्त हो जाता है.
साल भर से मन में जमें विचारों को बाहर व्यक्त कर देने का माध्यम बन जाता है यह समय
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जवाब देंहटाएंबहुत खूब .सुन्दर प्रस्तुति. आपको होली की हार्दिक शुभ कामना .
ना शिकबा अब रहे कोई ,ना ही दुश्मनी पनपे गले अब मिल भी जाओं सब, कि आयी आज होली है
प्रियतम क्या प्रिय क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .
सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंअन्दर की भड़ांस निकालने का यह अच्छा त्याहोर है.पर इन कुत्सित प्रवर्तियों ने इसे बदनाम कर दिया है.और इसलिए लोग होली खेलने से बचने लगें हैं.
जवाब देंहटाएंअन्दर की भड़ांस निकालने का यह अच्छा त्याहोर है.पर इन कुत्सित प्रवर्तियों ने इसे बदनाम कर दिया है.और इसलिए लोग होली खेलने से बचने लगें हैं.
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