//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
एक नए रहस्य का पर्दाफाश हुआ है। ‘गरीबों’ की पोल खुल गई है। एक तरह से कहा जाए ‘रंगे हाथों’ की तर्ज पर वे ‘रंगे पेट’ पकड़े गये हैं। पैसठ सालों से हम हैरान-परेशान थे कि आखिर कम्बख्त यह महँगाई बढ़ती क्यों है? राजनीतिज्ञों ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए, अर्थशास्त्रियों ने एक से एक भारी-भरकम सिद्धांत पेले, मगर असली चोर अब पकड़ में आया है। ये साले गरीब देश का सारा अन्न भकोस-भकोस कर महँगाई को हवा दे रहे हैं।
कुछ दिन पहले मैंने बाज़ार जाने की हिम्मत की थी। आलू-प्याज और दूसरी तमाम
सब्जियों के दाम आसमान पर थे। माजरा अब समझ में आया है। गरीब आसमान में बैठकर
दना-दन सब्जियाँ, आलू-प्याज खा रहे थे। कुछ समय बाद
दाम कुछ कम हुए, जरूर गरीबों को अमीरों पर रहम आ गया
होगा और उन्होंने अपने खाने की तादात और गति पर लगाम लगा ली होगी। अंडा, मटन-मच्छी की दुकान पर जाने में तो मेरी आज भी रूह काँपती है,
गरीब-गुरबे इस कदर नानवेज खा रहे हैं कि उसकी कीमत हमेशा
सातवे आसमान पर ही रहती है। ये गरीब जरूर लोगों को पूरी तौर पर वेजीटेरियन बनाकर
छोड़ेंगे।
एक दिन मैं रेडीमेड कपड़ों की दुकान
पर गया, पैंट-कमीज़ खरीदने, लेकिन कमीज़ के भाव सुनकर मुझे गश आते-आते रह गया इसलिए मैंने पैंट की कीमत
तो पूछी ही नहीं। पूछता तो शायद हार्ट अटैक का सामना करना पड़ता। अब तक मेरी खोपड़ी
में यह सवाल घूम रहा है कि आखिर एक अदद कमीज़ की कीमत उस दुकान के सेल्समेन की
तनख्वाह से दो-गुनी कैसे हो सकती है। सेल्समेन की तनख्वाह देढ़ हज़ार और कमीज़ की
कीमत तीन हज़ार थी। अब पता चला देश के गरीब ब्रांडेड पैंट-कमीजे़ं पहन-पहनकर उनके
दाम बढ़ा रहे हैं।
इन गरीबों ने देश में महँगाई ही नहीं बहुत कुछ बढ़ाया है। जैसे गुरबकों ने
गरीबी ही बढ़ा मारी। वे देश वासियों की क्रय शक्ति ही खाकर बैठ गए हैं, गरीबी तो बढ़ना ही है। उन्होंने बेरोज़गारी बढ़ाई है, क्योंकि वे रोजगार की संभावनाएँ खाए बैठे हैं। उन्होंने
जमाखोरी-कालाबाज़ारी बढ़ाई है, क्योंकि वे
कायदा-कानून पचा कर बैठे हैं। और तो और उन्होंने भ्रष्टाचार बढ़ाया है क्योंकि वे
रात-दिन देशवासियों की ईमानदारी की कमाई खाते रहते हैं। भूखे मरने की नौबत न आ जाए
इसलिए लोग रिश्वत और कमीशन खाकर अपनी जान बचाते हैं। किसी को यह बात मालूम नहीं है,
मैं बता दूँ कि ये गरीब देश के पूँजीपतियों, नेता मंत्रियों, अधिकारियों-कर्मचारियों
और ईमानदारी से मेहनत करके, खून-पसीना बहाकर
कमाई गई धन-दौलत को अत्यंत चाव से खाने के शौकीन न होते, तो कसम से देश में इतना भ्रष्टाचार कभी नहीं होता।
जब से महँगाई बढ़ने के
अत्यंत गोपनीय राज का पर्दाफाश हुआ है, मेरी बेचैनी बढ़ गई है। मेरी हार्दिक इच्छा है कि
जितनी जल्दी हो सके मुझे उस कमीशन का चेयरमैन बना दिया जाए, जो इस मामले में कम से कम दस बोरी कागज़ खर्च करने की ज़रूरत से गठित किया
जाएगा। मैं अपनी रिपोर्ट मैं इन गरीबों का सूपड़ा साफ करने के प्रभावी तौर-तरीकों
पर अपने अमूल्य सुझाव दे दूँगा। मगर मुझे मालूम है ऐसा नहीं होने वाला, क्योंकि ये गरीब शिखर पर बैठे नीति-नियंताओं का सारा ज़मीर तक खाकर हज़म कर चुके
हैं, इसलिए देश में भाई-भतीजावाद और बहन-भाँजावाद बहुत बढ़ गया है। गरीब सब कुछ खा
गए हैं इसलिए देश में हर कुछ अब चरम पर पहुँच गया है।
सब कुछ ग़रीबों के खा जाने तो ही मँहगाई बढ़ जाती है।
जवाब देंहटाएंअब समझ में आया कि ये ससुरा गरीब ही देश में गरीबी को बढावा दे रहा है.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंकरारा व्यंग ,बहुत बढ़िया
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जवाब देंहटाएंकल दिनांक 14/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!