//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
गब्बरसिंग की बूढ़ी हड्डियों में कड़-कड़ की आवाज़ आने लगी, बाज़ुए फड़कने लगीं और आँखों की चमक से ‘सांभा’ समेत दूसरे तमाम डाकू खुशी से झूम उठे - इतने दिनों से फालतू बैठे हैं, अब कुछ न कुछ ज़रूर होगा। एक डकैत तो उत्साह में काली माई की आदमकद मूर्ती की साफ-सफाई में लग गया कि शायद अब खून का टीका लगाकर सौंगध उठाने का समय आ गया है।
गब्बरसिंग हाथ में सुबह का अखबार लहराता हुआ चिल्लाया-‘‘अरे ओ सांभा ! ये ‘सुस बैंक’ किधर है रे ? फौरन डाका डालने की तैयारी शुरु करो।’’
सांभा जो अब भी चट्टान पर बैठा न जाने किस की निगरानी कर रहा था, बोला-‘‘पगला तो नहीं गए सरदार! सुस बैंक कोई पच्चीस-पचास कोस दूर नहीं है जो मरियल घोड़ों पर धावा बोलकर लूट लावे! सात समुन्दर पार है सात समुन्दर पार।’’
‘‘सात समुन्दर पार !! इतनी दूर! बहुत नाइन्साफी है रे! इतनी दूर जाकर पैसा जमा करने की क्या ज़रूरत थी इन हरामज़ादों को! यही कहीं बैंक में नहीं रख सकते थे ? गब्बरसिंग का खौफ अभी कम नहीं हुआ है, क्योंरे सांभा ?’’ गब्बरसिंग मूँछ पर ताव देता हुआ आत्मश्लाघा से गरदन ऊँची करता हुआ बोला। इस पर सांभा गब्बरसिंग से असहमति जताते हुए बोल पड़ा-‘‘कोई भटे के भाव नहीं पूछ रहा गब्बर-अब्बर को सरदार! अब तुम जैसे टुच्चे डाकुओं की कोई औकात रही नहीं इस देश में, तुमसे बड़े-बडे़ सफेदपोश डाकू पैदा हो गए है यहाँ। देख नहीं रहे लूट का कितना माल देश के बाहर पहुँचा दिया सुसरों ने!’’
गब्बर अखबार की हेडिंग पर नज़र डालता हुआ सांभा से पूछने लगा-‘‘सात पर तेरह शून्य, कितना रुपया होता है रे सांभा ?’’
‘‘सरदार! इतना पढ़े-लिखे होते तो तुम्हारी गैंग में झक मार रहे होते क्या ? शान से कहीं अच्छी जगह बैठकर माल बटोर रहे होते, जैसे देश में इतने सारे लोग बटोर रहे हैं। नेता बनते, अभिनेता बनते, मंत्री-अफसर बनते, बड़ा उद्योगपति, व्यापारी बनते, ठेकेदार-दलाल बनते और देश का माल हजम करते। यहाँ चट्टान पर बैठकर चौकीदारी काहे करते रहते।’’ सांभा ने पहली बार गब्बर के सामने अपनी कुंठा अभिव्यक्त की। इस पर गब्बरसिंग आश्चर्य प्रकट करता हुआ बोला-‘‘अरे सांभा! देश में तो अपने से भी बड़े-बडे़ लूटेरे खुले घूम रहे हैं, सरकार अपने पर तो हज्जारों रुपया ईनाम घोषित कर देती है, उन पर काहे नहीं करती। उन्हें पकड़ती काहे नहीं जो देश का नाम पूरा मिट्टी में मिलाए दे रहे हैं!’’
सांभा गब्बर को समझाता हुआ बोला-‘‘ लोकतंत्र है सरदार। लोकतंत्र में सरकार को ताकतवर लोगों से डर कर चलना पड़ता है। हर किसी पर हाथ डालने से पहले चार बार सोचना पड़ता है।’’
गब्बर आपा खोकर जोर से चिल्लाया-जो डर गया समझो मर गया। गब्बर के गिरोह में अगर किसी ने यूँ अमानत में खयानत की होती तो उसकी बोटी-बोटी नोचकर चील-कौओं को खिलाता गब्बर।’’
सांभा खीजता हुआ बोला-‘‘अब ये पुरानी डायलॉगबाजी बंद करो सरदार! लोकतांत्रिक सरकार और डाकुओं के गिरोह में बहुत फर्क होता है। लोकतांत्रिक सरकार, सार्वजनिक ‘लूटतंत्र’ के सिद्धांत पर चलती है और तुम जैसे डाकुओं का गिरोह शुद्ध ‘तानाशाही’ के सिद्धांत पर चलता है। डकैतों में सरदार नाम का डाकू पूरा माल खुद हड़प जाता है मगर लोकतंत्र में सब मिल-बाँटकर खाते हैं।’’
गब्बरसिंग सांभा की बात से रुष्ठ हो गया और पूरे गैंग पर लगा चिल्लाने -‘‘सुअर के बच्चों, ज़्यादा चलाई तो हलक से बाहर खींच लूँगा तुम सबकी ज़बान। चुपचाप ‘सुस बैंक’ में डाका डालने की प्लानिंग फायनल करो। धिक्कार है, देश की ‘सात पर तेरह शून्य’ की रकम दूसरे देश की बैंक में पड़ी हुई है और कोई माई का लाल उसे वापस लाने की हिम्मत नहीं कर रहा, धिक्कार है धिक्कार। अब यह माँबदौलत गब्बरसिंग पूरी की पूरी रकम वापस लाकर रहेगा।’’
पृष्ठभूमि में कूँऊऊऊऊऊ की लम्बी ध्वनि के बाद लम्बा सन्नाटा छा गया। गब्बरसिंग के आदमी खुश भी थे और किसी अनहोनी के अंदेशे से डर भी रहे थे।
सात पर तेरह शून्य...बहुत सारे शून्य हैं भई...नाइंसाफी तो है.
जवाब देंहटाएंहा हा, प्रमोद जी उत्कृष्ट व्यंग्य। मजा आ गया, वाकई नाइंसाफी है गब्बर जैसे छोटे-मोटे डाकू पर इनाम है और अरबों लूटने वाले खुले आम घूम रहे हैं।
जवाब देंहटाएंव्यंगय बहुत अच्छा लगा है, सही है अब काले नकाबो बाले डाकुओं का जमाना गया अब तो सफेदपोश डाकुओं का जमाना है
जवाब देंहटाएंहमारे देश की सम्पदा की किस्मत खराब है। पहले अंग्रेजों ने लूटा, पाकिस्तान को दान दिये, भ्रष्टाचारी सुस बैंक में डाल आये, बाकी काश्मीर को दे दिये, अब दल अगले 5 इलेक्शन के लिये घोटाले कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंधिक्कार है...
जवाब देंहटाएंबहुत सही व्यंग्य किया है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
denkhe gabbar kya karata hai.......? visa milega tab n ...?
जवाब देंहटाएं‘सात समुन्दर पार !! इतनी दूर! बहुत नाइन्साफी है रे! इतनी दूर जाकर पैसा जमा करने की क्या ज़रूरत थी इन हरामज़ादों को! यही कहीं बैंक में नहीं रख सकते थे ?
जवाब देंहटाएंBahut accha teer mara hai apne.
सात पर तेरह शून्य
जवाब देंहटाएंबहुत नाइंसाफी है है भाई ...प्रमोद जी बहुत अच्छा व्यंग...
Pramod.bahut aacha lika hai.
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