//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
पत्रिका में |
हमने ज़िन्दगी में कभी क्रिकेट का बल्ला नहीं पकड़ा, मगर समुद्र की उद्दाम लहरों पर हाथ-पाँव मार रहे अनाड़ी तैराकों की तरह विश्वकप में, उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हमारे महारथियों की टीम इन्डिया को देखकर लगता है कि हमारे भी हाथ-पैरों में गद्दे बाँधकर, खोपड़ी पर शिरस्त्राण चढ़ाकर मैदान में छोड़ दिया जाए तो हम भी एक गैर पेशेवर अनाड़ी की सभी खूबियों के साथ कुछ न कुछ कमा ही लाएँगे। यह बात हम इतने भरोसे से इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जब खेल क्रिकेट का हो तब हर खिलाड़ी के साथ भगवान का आशीर्वाद ज़रूर रहता है, इसलिए नास्तिक होने के बावजूद जैसे ही हम टीम इन्डिया के सदस्य बनकर मैदान में उतरेंगे, ‘भगवान’ हमारे साथ आ खड़ा होगा, और बाकी जो कुछ भी करना है वही करेगा।
विश्वकप की भारतीय टीम के साथ ऐसा ही है। हमारे खिलाड़ी भगवान के शहस्त्रों आशीर्वादों के साथ टीम में है। जिसे रन बनाने के लिए रखा गया है भले ही वह रन न बनाए मगर वह टीम में अवश्य रहेगा, जिसे विकिट लेने के लिए रखा गया है वह विकिट नहीं लेगा परन्तु टीम में रहेगा। क्या पता जो रन बनाने के लिए रखा गया है वह धड़ाधड़ विकिट लेने लगे या जिसे विकिट लेना है वह रन बनाने की मशीन साबित हो जाए! कुछ भी हो सकता है, क्योंकि भगवान उनके साथ है।
जागरण में |
तो बंधु, जब इस तरह भगवान भरोसे ही विश्वकप खेला जाना है तो हम क्या बुरे हैं जो कभी क्रिकेट मैदान में नहीं उतरे। हम भी ज़ीरों पर आउट होने या न्यूनतम रन बनाने की बहादुरी दिखा सकते हैं। हम भी चारों दिशाओं में चौकों-छक्कों की बौछार का नज़ारा दिखवा सकते है, हम भी मैदान में दौड़ती गेंद को बिना छुए मैच समाप्त कर वापस पवेलियन में लौट सकते हैं। ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा, लोग अनाड़ी कहेंगे! तो जब दिग्गज खिलाड़ियों को अनाड़ी कहा जा रहा है तो ऐसा प्रदर्शन तो हम भी बखूबी कर सकते हैं।
बहुत ही सामयिक और सटीक व्यंग्य!
जवाब देंहटाएंसादर
क्रिकेट अमीरों का 'कूड़ा-करकट'खेल है.हम आम जनता को इससे कोई फायदा नहीं होगा.
जवाब देंहटाएंजब ऊँचे पहाड़ पर पहुँच जाते हैं तो गढ्ठा देखकर कूदने लगते हैं।
जवाब देंहटाएंप्रमोद सुपुत्र
जवाब देंहटाएंआशीर्वाद
स्टीक व्यंग कौन से शब्दकोश में से ढूंढते हैं आप
दादी को हिंदी भी नहीं बोलनी लिखनी आती
बहुत सुंदर व्यंग। मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंखेलना तो हम भी चाहते हैं..हम ही कौन बुरे हैं.
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