//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
मैं बेहद कुंठित हूँ कि बीस रुपये रोज़ औसत कमाई वाले इस देश में क्रिकेट को ‘धर्म’ की तरह अपनाऊँ या ‘विज्ञान’ की तरह! अपनाना तो पड़ेगा किसी न किसी रूप में, क्योंकि हमने हाल ही में क्रिकेट के बड़े-बड़े बल्लमों को धूल चटाकर विश्वकप जो जीता है। सारा देश ‘धर्म से उन्माद’ और ‘किक्रेट के विज्ञान’ के प्रभाव में है, इसलिए अपनी सभी प्राथमिकताओं को ताक पर रखकर तुरत-फुरत इसे अपनाना बेहद ज़रूरी है, वर्ना खेलद्रोही कहे जाने का खतरा आसन्न है।
कभी क्रिकेट को एक खेल की तरह खेला जाता था, लेकिन अब इसमें से ‘खेलत्व’ खत्म हो गया है। यह कमोबेश ‘धर्म’ की तरह नज़र आने लगा है, जिसे हम सर-माथे पर धारण करते हैं, ओढ़ते-बिछाते हैं और लगे हाथ दमीचते-पछीटते भी हैं। तुम्हारा ‘धर्म’ हमारे धर्म से महान कैसे कि तरह, तुम्हारा ‘क्रिकेट’ हमारे ‘क्रिकेट’ से महान कैसे वाली भावना से लेकर क्रिकेट का विश्व-गुरू बनने तक की सनक इस फील्ड में दिखाई देने लगी है। कट्टरता की भाव-भंगिमा, रोंद डालो, काट डालो, पीट डालो, चटनी बना दो, यलगार हो, किलाफतह आदि-आदि डायलॉगबाज़ी जो धर्म के क्षेत्र में चलती है, अब क्रिकेट में भी नज़र आने लगी है।
जिस तरह धर्म को अहर्निश ओढ़ा-बिछाया जाता है, जिस तरह धर्म में अंध-आस्था और अंध-विश्वास का पारायण किया जाता है, क्रिकेट में भी किया जाने लगा है। अपन तो हमेशा धर्म-निरपेक्ष के साथ-साथ खेल-निरपेक्ष भी रहे और खेलत्व की भावना भी जिन्दा रखी, मगर अब जिस तरह यह दोनों ही मूल्य खतरे में नज़र आ रहे हैं, लग रहा है क्रिकेट को धर्म की तरह अपनाना पडे़गा। अगर न अपनाऊँ तो मुझे विश्वास है लोग मार-मारकर अपनाने पर मजबूर कर देंगे।
इधर क्रिकेट को विज्ञान की तरह मिस-यूज़ भी किया जाने लगा है, जो खासा आन्दोलित करने वाला है। जैसे विज्ञान हमें सिखाता है कि प्रकृति, विश्व ब्रम्हांड को अपने काबू में कैसे रखा जा सकता है, क्रिकेट दुनिया भर के सत्तानशीनों को सिखाता है कि पब्लिक को काबू में कैसे रखा जा सकता है। सत्तासीनों के पास क्रिकेट एक ऐसे अस्त्र के रूप में मौजूद है जिसके प्रक्षेपण से जनता के आक्रोश, गुस्से और कुंठा को कंट्रोल किया जा सकता है। कितनी भी महँगाई हो, बेरोज़गारी हो, जीना कितना भी मुश्किल हो, कितनी भी अराजकता हो, घोटालें हों, भ्रष्टाचार हो, देश गले-गले तक अव्यवस्थाओं का शिकार हो, बस एक के बाद एक क्रिकेट टूर्नामेंट करवाते रहो, सब ठीक हो जाएगा।
जनता को जब देने के लिए के लिए कुछ न हो तो क्रिकेट का जुनून दे दो वह उछलते कूदते हुए जी लेगी। खाओ क्रिकेट, पीयो क्रिकेट, जीयो क्रिकेट ऐसी इक्वेशन है जो सारे गम भुला देती है, सारे दुखों का नाश कर देती है। विश्वकप का जुनून ऐसा चढ़ा की लोग जापान का भूकम्प और सुनामी भी भूल गये। लोग भूल गए कि देश में एक घोड़ों का व्यापारी कितना टैक्स दबाकर बैठ जाता है। क्या ‘कलमाड़ी’ क्या ‘राजा’, क्रिकेट के नशे में लोग भूल गए कि उन्होंने क्या किया। क्रिकेट ने ऐसी जादू की छड़ी घुमाई कि किसी का ध्यान ही नहीं गया कि मित्र राष्ट्रों की सेनाएँ कहाँ-कहाँ बरबादी कर रहीं हैं। यह क्रिकेट का विज्ञान ही है जिसका उपयोग दुनिया भर की सत्ताएँ खूब करती हैं। खेल में धर्म सा उन्माद और सत्ताधारी ताकतों के इस क्रिकेट विज्ञान को देखकर भारी किंकर्त्तव्यविमूढ हूँ, आखिर क्या करूँ।
सोचता हूँ भावी विश्वयुद्ध को सफलतापूर्वक मंचित करने के लिए एक विश्वस्तर का क्रिकेट टूर्नामेंट कितना कारगर होगा। दुनिया भर की पब्लिक क्रिकेट की खुमारी में रहेगी, कहीं कोई विरोध, कोई आन्दोलन न होगा और साम्राज्यवादी सेनाएँ प्रजातांत्रिक मूल्यों की सुभीते से बरबाद करती रहेगी। विश्वयु़द्ध उत्साहपूर्वक सफल हो जाएगा जैसे विश्वकप क्रिकेट टूर्नामेंट सफल होता है।
"सोचता हूँ भावी विश्वयुद्ध को सफलतापूर्वक मंचित करने के लिए एक विश्वस्तर का क्रिकेट टूर्नामेंट कितना कारगर होगा।"
जवाब देंहटाएंक्या बात कही सर!
वैसे खेल को खेल ही रहने देना चाहिए.अभी तो जीत गए हैं तो यह उन्माद है और अगर हार गए होते तो न जाने क्या क्या हो गया होता.
बहुत सही कटाक्ष किया है आपने.
राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर
bahut sateek vyangya , kintu sach
जवाब देंहटाएंरामनवमी पर्व की ढेरों बधाइयाँ एवं शुभ-कामनाएं
साथ बनाये रखिये नही तो अज्ञानी समझ आने वाली पीढ़ी त्याग देगी। क्रिकेट तो राजनैतिक अस्त्र भी बन गया है।
जवाब देंहटाएंरामनवमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंचाहत की कीमत
तर्क और तकरार
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएं............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
एच.आई.वी. और एंटीबायोटिक में कौन अधिक खतरनाक?
बेहतरीन!
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