//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
देश के कई मनीषियों का मत है कि जिसका जो काम है उसे वही करना चाहिए। यानी चोर को चोरी करना चाहिये, डकैत को डकैती डालना चाहिये, ठग को ठगी करना चाहिये, रिश्वतखोर को रिश्वतखोरी करना चाहिए। चोर अगर रिश्वत लेने लगे और ठग डकैती डालना शुरु कर दे तो यह निहायत ही अनैतिक बात होगी। दुष्ट पुलिस डंडे भाँजने की बजाय भजन-कीर्तन करती नज़र आए तो यह उसकी नालायकी होगी। जिनका काम कमर मटकाकर ‘भाँडगिरी’ करना है वे ‘प्रवचन’ देने लगें तो यह बात भी नैतिकता की परिधि में नहीं आती है। नेता-मंत्री कार्पोरेट घरानों की दलाली करें यहाँ तक तो ठीक है, मगर वे खुद अपनी काली कमाई से एक कार्पोरेट घराना बनकर बैठ जाएँ तो बात कतई पाचन योग्य नहीं है। पूँजीपतियों को चाहिये कि वे घर में बैठकर आराम से गरीब-मजदूरों और आम जनता का खून चूसें मगर वे खद्दर पहनकर राजनीति में आ जाते हैं तो यह मनीषियों के मत का सरासर अपमान है।
दिल्ली प्रशासन ने बाबा रामदेव को जबरदस्ती इसीलिए पतंजलि आश्रम की ओर खदेड़ दिया कि वे वहीं रहकर अपना काम करें। बाबा प्राणायाम और योग-आसनों के दम पर कई सारे असाध्य रोगों का इलाज करते हैं, जो बड़े-बड़े डॉक्टरों के बस में नहीं रहे। फिर स्वास्थ्य महकमों की हरामखोरी की वजह से देश भर में भरे पड़े नाना प्रकार के मरीज़ों की दवा-दारू नहीं हो पाती है, इसलिए देश को बाबा रामदेव की स्वास्थ्य सेवाओं की सख्त आवश्यकता है, वे मानव-मात्र की सेवा के इस पुनीत कर्म को छोड़कर पापी राजनीति में घुसे चले आ रहे थे, इसीलिये दिल्ली पुलिस ने उन्हें अपने कर्तव्य पथ से भटकने से बचाने के लिए उनके अनशनरत् अनुयाइयो की हड्डियाँ-पसलियाँ तोड़कर रेडीमेड मरीज़ उपलब्ध करा दिये हैं, कि लो अब इनसे कपालभाती, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी करवाकर इनकी बिखरी हुई हड्डियाँ जोड़ने में अपना बाकी समय व्यतीत करो।
आज़ादी आन्दोलन के समय मजदूर सिर्फ मजदूरी करते थे, किसान सिर्फ किसानी करते थे, छात्र-नौजवान सिर्फ मटरगश्ती करते थे और स्त्रियाँ सिर्फ चूल्हा-चौका और बच्चे पैदा किया करती थीं। इनमें से अगर कोई भी आज़ादी की लड़ाई की तरफ झाँकता तो कसम से हम कभी आज़ाद नहीं हो पाते
सटीक और सत्य चोट!! भ्रमभंजन व्यंग्य!!
जवाब देंहटाएंजिसका काम उसी को साजे,
जवाब देंहटाएंऔर करे तो डंडा बाजे ।
वाह वाह वाह खासकर रेडीमेड मरीज वाली लाईन तो गजब है आपने बिना कहे दोशियो को क्या क्या नही कह दिया
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त व्यंग्य है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सहमत हूँ लेकिन आपको बताऊंगा नहीं कि किससे सहमत हूँ ?
जवाब देंहटाएंNice post.
हा हा, मजेदार व्यंग्य। रेडीमेड मरीज वाली लाइन वाकई गजब की है।
जवाब देंहटाएंहम भी अपना काम करते हैं ब्लॉगियाना और टिपियाना वरना कहीं पुलिस हम पर भी लाठियाँ न बरसा दे।
डॉ. जमालगोटा हमें पता है की तुम कम से कम इस व्यंग्य से तो सहमत नहीं ही हो. पिग्गी राजा और श्वानमुख खान से तुम असहमत हो नहीं सकते. डॉ. जमालगोटे जमालगोटा का हैवी डोज़ लेकर सो जाओ कल सुबह लोटा परेड करनी है या नहीं
जवाब देंहटाएंसही ना हो तो व्यंग्य हो ही नहीं सकता। व्यंग्य से जो असहमति व्यक्त करते हैं वे भी दिल से सहमत ही रहते हैं।
जवाब देंहटाएंकिसका काम क्या हो, बड़ा गहरा प्रश्न?
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