//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
त्योहारी सीज़न शुरु होते ही नैतिक जिम्मेदारी और कर्त्तव्यनिष्ठा की जिस भावना से नकली खाद्य पदार्थ निर्मातागण ओतप्रोत हो जाते हैं, उसके बगैर तो देश में परम्पराओं का निर्वाह ही कठिन हो जाए। अब देखिए, दीपावली का त्योहार सर पर खड़ा है, और नकली मिठाई बनाने वालों की रातों की नींद हराम है। वे यदि बाज़ार में मिठाई की शत्-प्रतिशत् आपूर्ति नहीं दे पाए तो न केवल परम्परा का सत्यानाश हो जाए बल्कि सरकारों का निठल्लापन भी उजागर हो जाए। ऐसे में मिठाई वाले नकली मावा बनाने वालों की नींद हराम करते हैं और नकली मावा बनाने वाले नकली दूध बनाने वालों की। नकली दूध बनाने वाले को गाय-भैंसों की नींद हराम करना चाहिए मगर वे ठहरी जनावर ज़ात, सो स्वार्थ का यह अमानवीयतापूर्ण कदाचार उन्होंने अब तक नहीं सीखा है।
देश में माँग और आपूर्ति की हमेशा समस्या रहती आई है। इसकी चिंता और कोई करे न करे नकली माल निर्माता हमेशा करते हैं। इस मामले में उनसे ज़्यादा दायित्व बोध किसी भारतवासी में नहीं। त्योहारों पर उनकी चिंता और कार्यभार दोनों बढ़ जाते हैं। जहाँ मिठाइयाँ भकोसने वालों की बढ़ती तादात के मद्देनज़र माँग और आपूर्ति के प्रश्न पर शासन-प्रशासन के माथे पर चिंता की एक पतली सी लकीर तक पैदा नहीं होती, वहीं नकली माल बनाने वाले इशारों ही इशारों में चट इस राष्ट्रीय समस्या का समाधान कर अपना देशप्रेम सिद्ध कर जाते हैं। देखते ही देखते डिटर्जेंट और यूरिया-बेस्ड नकली पाश्चूरीकृत दूध तैयार हो जाता है, इस नकली दूध में कागज़ की लुगदी और नकली घी इत्यादि के अतिरिक्त मिश्रण से नकली मावा तैयार कर बाज़ार में उतार दिया जाता है, फिर पारखी हलवाई इस नकली मावे में और भी कलाकारी दिखलाकर जिव्हालोभक, स्वादिष्ट मिठाई तैयार कर शोकेस में सजा देता है। लोग इस नकली मिठाई का हर्षित मन से आदान-प्रदान कर त्योहारी खुशियाँ मनाते हैं।
हमारे देश में मिठाई भकोसने वाले बड़ी तादात में हैं। नकली दूध-मावा बनाने वाले अपना कौशल आजमाते भले थक जाएँ, मिठाई बनाने वाले बनाते-बनाते हलाकान हो जाएँ, बेचने वाले बेचते-बेचते थक मरें परन्तु खाने वाले कभी नहीं थकते। शरीर में मनो-टनों चर्बी का हिलोरे लेता सागर लिए रहने के बाद भी मिठाई के लिए अगले की जीभ हमेशा लपलपाती रहती है। मिठाईखोर की चिन्ता में देश के कितने सारे लोग रात-दिन जागकर नकली दूध-मावा-मिठाई की आपूर्ती सुनिश्चित करते हैं। ये कर्मठ लोग अगर चरम निष्ठापूर्वक अपने सामाजिक कर्त्तव्य का निर्वहन न करें तो न केवल पारम्परिक हर्षोल्लास की वाट लग जाए बल्कि देश में स्वदेशी आन्दोलन की नींव ही धँसक जाए, क्योंकि फिर बाज़ार में विदेशी चाकलेटों, मिठाइयों का बोल-बाला होने से कोई नहीं रोक सकेगा। नकली दूध-मावा-मिठाइयों के बरसों की मेहनत से ईजाद किये गये फामूर्लों का कोई अर्थ नहीं रहेगा। इस संभावना के विचार से बड़ी राहत मिलती है कि हमारे प्रतिभाशाली शोध और अनुसंधानकर्ता देर-सबेर नकली विदेशी चाकलेट और मिठाइयाँ बनाने की विधियाँ भी ईजाद कर ही लेंगे, अर्थात त्योहार के सीज़न में उन्हें खाली बैठने की नौबत नहीं आएगी।
बहुत ही कटाक्ष किया है सर!
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
सादर
न जाने कितना अखाद्य खिला दिया जायेगा, खोये के नाम पर।
जवाब देंहटाएंkitana hi samjhao ... nakai log nakli ko badava denge hi ... !!! Bahut Khub sir ... DIVALI SHUBH HO !!!
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