//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
एक हुआ करते थे रॉबिनहुड, जो सुना है अमीरों को लूटकर लूट का माल गरीब-गुरुबों में बाँट दिया करते थे। अपने देश में भी रॉबिनहुड छवि के कई डकैत हुए जिन्होंने मालदार लोगों के यहाँ डकैतियाँ डाल-डाल कर माल इकट्ठा किया और गरीबों में बाँट-बाँटकर धर्मात्मा कहलाए! गरीब लड़कियों के लिए दहेज की व्यवस्था कर उनका घर बसाया। उन महान आत्माओं ने रिश्वतखोरों के वास्ते रिश्वत की रकम उपलब्ध कराकर कई बेरोजगारों के लिए नौकरियों का इंतज़ाम किया होगा और सूदखोर महाजनों का चक्रवर्ती ब्याज चुकाने की व्यवस्था कर बहुतों को कर्ज़ से मुक्ति भी अवश्य दिलाई होगी।
उस अनोखी समाज सेवा के लिये रॉबिनहुड का उसके मुल्क की पुलिस और कानून ने क्या हश्र किया यह तो नहीं मालूम, मगर हमारे देश के रॉबिनहुडों की इस अद्वितीय समाज सेवा के बावजूद, हथ्थे चढ़ने पर पुलिस ने खूब ठुकाई की और कानून ने भी ज़ाहिर है आरती तो उनकी बिल्कुल नहीं उतारी होगी।
आजकल नए किस्म के रॉबिनहुड पैदा हो रहे हैं जो साक्षात डकैतियाँ तो नहीं डाल रहे है मगर, अनैतिक ढंग से पैसा उगाहकर समाज सेवा कर रहे हैं। कन्सेशनल टिकट पर यात्रा का लुत्फ उठाकर सामने वाले से पूरा पैसा वसूल रहे हैं और इस शार्टकट से बनाए हुए पैसों, यानी ‘माल-ए-गनीमत’ से सोसायटी के ऊपर परोपकार ढोल रहे हैं।
देश में अनैतिक तौर-तरीके से धन कमाने वाले कई लोग हैं, ये सभी शार्टकट रास्तों से माल उगाहते हैं जो सरकार की वक्र दृष्टि के कारण ‘गनीमत’ के रूप में उनके रजाई गद्दों, बाथरूम के फर्शों के नीचे दबा पड़ा रहता हैै। वे चाहे तो अपना माल-ए-गनीमत, समाज सेवा में लगाकर पुण्य कमा सकते हैं। ऐसा हो तो सचमुच राम राज्य ही आ जाए।
समाज सेवा के लिए नीति-नैतिकता की नहीं बल्कि रोकड़े की ज़रुरत होती है, फिर चाहे वह रिश्वतखोरी, कमीशन से आए, घोटालेबाजी से या, कन्सेशनल टिकटों के बदले पूरा धन वसूल कर। कोई चाहे तो जुए-सट्टे के धन से और पैसे वालों पर अड़ी डालकर भी समाजसेवा का काम किया जा सकता है। रुपया तो आखिर रुपया होता है, उस पर अनैतिकता का ठप्पा तो होता नहीं है, जो वह बाज़ार में न चले।
रॉबिनवा रॉबिनवा खेलने से पाप जो छिप जाता है।
जवाब देंहटाएंकरारा.
जवाब देंहटाएंसुंदर कटाक्ष ..
जवाब देंहटाएं