//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
एक कहावत है-‘‘पानी में रहकर मगर से बैर।’’ इस कहावत के मुताबिक यदि आप पानी में रहकर ‘मगर’ से दुश्मनी मोल लोगे तो वह आपको जिन्दा नहीं छोड़ेगा, कच्चा चबा जाएगा। प्रश्न यह है कि यदि आप पानी में रहकर ‘मगर’ से बैर नहीं भी लोगे तो क्या वह आपको बिना नुकसान पहुँचाए ज़िन्दा छोड़ देगा ?
चलो, इससे भी आगे बढ़कर यदि कोई आदमी रात-दिन ‘मगर’ की चापलूसी, चम्मचगिरी करे, उसकी मालिश करे, हाँथ-पैर दबाए, दुम न होते हुए भी उसके सामने दुम हिलाता रहे, तो क्या सामने मौजूद स्वादिष्ट भोजन को छोड़ देने के उम्मीद किसी ‘मगर’ से की जा सकती है ?
पानी में ही क्यों! पानी के बाहर भी यदि आप ‘मगर’ के लपेटे में आ गए तो वह आपका नाश्ता, लंच, डिनर, जो भी सुविधाजनक हो, कर लेगा। इसमें उसके लिए दोस्ती-बैर की कोई अड़चन सामने नहीं आएगी। पानी के अन्दर या बाहर फर्क सिर्फ यह होगा कि अच्छे तैराक होने के बावजूद भी पानी में आपके सामने ‘मगर’ से बचकर भागने का कोई रास्ता नहीं होगा, आप एक झपट्टे में मगर के मुँह के भीतर मौजूद आरा मशीन के नीचे होंगे। पानी के बाहर आप दौड़ लगाकर किसी पेड़-वेड़ या ऊँची जगह पर पनाह लेकर अपनी जान बचा सकते हैं, यदि वहाँ पहले ही से कौई ‘मगर’ मौजूद न हो। पानी रहे न रहे, दोस्ती रहे बैर रहे, वह दुष्ट ‘मगर’ आपके शरीर को भंभोड़-भंभोड़कर सारी हड्डियों का चूरमा बनाकर खा जाएगा।
पूँजीवाद एक सड़ी हुई व्यापक जलराशि है जिसने सम्पूर्ण धरा के पर्यावरण का सत्यानाश करके रखा है । इसकी तासीर ऐसी है कि सम्पर्क में आते ही गउ से गउ इंसान भी ‘मगरमच्छ’ में तब्दील होकर खाने के लिए कुछ ढूँढ़ने लगता है। सामने जो कुछ भी आ जाए वह सब कुछ खा जाता है। मनुष्य के साथ-साथ मनुष्य की बुद्धि, विवेक, ज्ञान, तर्क, यहाँ तक कि मनुष्यता भी बारीक चबा-चबाकर उदरस्थ कर लेता है। राष्ट्रीय, अन्तराष्ट्रीय राजनीति को यदि ठहरा, सडांध मारता पानी माना जाए तो माननीय नेतागण इसमें पटे पड़े ‘मगरमच्छों’ से कम प्रतीत नहीं होते हैं। बैर हो यान हो वे तो आम जनता की तिक्का-बोटी करेंगे ही करेंगे।
मगर भला कहाँ जाने, अगर मगर।
जवाब देंहटाएंधारधार व्यंग्य....आभार.
जवाब देंहटाएंtalkh haqiqat hai
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