//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
मनुष्यों ने अपना खून चूसने वाली शक्तियों से निबटना खूब सीखा है। जैसे खटमल-मच्छर सदा से आदमी का खून चूसते आ रहे हैं, मगर आदमी ने गहन शोघ एवं अनुसंधान चलाकर खटमल-मच्छरमार दवाइयाँ और स्प्रे इत्यादि की ईजाद की और अपने इन जानी दुश्मनों की नाक में दम कर दिया। इसमें खटमलों का तो नामों-निशान तक नहीं दिखाई देता। मच्छरों की भी ज़ात इसी तरह कभी न कभी ज़रुर लुप्तप्राय हो जाएगी, मुझे पूरा विश्वास है।
दीमक, मक्खियों, काकरोज़ों, चीटियों का सूपड़ा साफ करने योग्य दवाइयाँ और स्प्रे बड़ी तादात में बाज़ार में उपलब्ध है। यह अलग बात है कि दवा-स्प्रे नकली निकल जाएँ या इन घरेलू आतंकी प्रजातियों की प्रतिरोधक क्षमता पहले ही से बढ़ी हुई हो, नतीजतन इनका बाल भी बाँका न हो, परंतु इंसान मारक से मारक दवा-स्प्रे खोज-खोजकर मनुष्य जाति के इन दुश्मनों का नाश करता रहता है।
मनुष्यों में ही मनुष्य जाति के अनेक दुश्मन हैं, जो रात-दिन मनुष्य का ही खून चूसते रहते हैं। इन पर छिड़कने के लिए आजतक कोई शक्तिशाली दवा या स्प्रे ईजाद नहीं किया गया, इसलिए दुष्टों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। गुंडे-बदमाश हों, भ्रष्टाचारी हो, रिश्वतखोर हो, काला बाज़ारी-जमाखोरी करने वाले हों, मिलावटिये, नकली माल बेचने वाले हों, व्यभिचारी-बलात्कारी हों, प्रत्येक के हिसाब से अलग-अलग क्षमता का डी.डी.टी. पावडर या ‘हिट’ स्प्रे किस्म के उत्पादों की श्रृंखला बाज़ार में आना चाहिये। जहाँ जैसे आदमी से मुकाबला हो वहाँ मुफीद सा आयटम ले गए और फुर्रर्रर्र से अगले के मुँह पर दे मारा, काम खत्म। घूसखोर-मार, सूदखोर-मार दवा की पुड़िया का व्यापक छिड़काव कर दिया हो गई सफाई। एक ऐसी पावरफुल स्मोक मशीन बनाई जानी चाहिये जिसे नेताओं के बहुतायत में पाए जाने वाले स्थान पर दरवाज़े-खिड़की बंद कर चला दिया जाए तो सारे भ्रष्ट नेता टपा-टप गिर पड़ें। एक-एक को उठाकर डस्बीन में डाल दो, हो गया काम।
विज्ञान को जनोन्मुखी बनाने का इससे बढ़िया तरीका और कोई हो ही नहीं सकता। वैज्ञानिक लोगों को चाहिये कि जल्दी से जल्दी इस दिशा में व्यापक शोध-अनुसंधान शुरु कर जनता को शक्तिशाली दवाएँ और स्प्रे उपलब्ध कराएँ, ताकि चारों ओर पसरे असामाजिक तत्वों का सफाया किया जा सकें।
काश इन सबकी भी दवा बना दे कोई।
जवाब देंहटाएंकशा ऐसी कोई दावा बन जाये तो मज़ा आजाये :-)
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