//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
देश को इतने बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों
के ज्ञान, अनुभव एवं सेवाओं का लाभ मिल रहा है परन्तु
लगता है कि ‘अक्ल’ सबकी घास चरने गई है। दना-दन धन कूट कर अर्थव्यवस्था की सारी समस्याएँ एक
झटके में दूर करने में सक्षम क्रिकेट-फिक्सिंग और सट्टे को जिस तरह कोढ़, खाज-खुजली और कैंसर की नज़र से देखा जा रहा है, मुझे तो नीति-नियंताओं की अदूरदर्शिता पर तरस आ रहा है।
क्रिकेट में फिक्सिंग को ‘दल्लेगिरी’ और ‘सट्टे’ जैसी पारम्परिक
खेल विधा को सड़क छाप जुआ-सट्टा, तीन पत्ती-मटका
इत्यादि घटिया और निकृष्ठ, गैर-कानूनी
गतिविधियों के रूप में देखा जाना अत्यंत खेद एवं असम्मानजनक है। अपने पूर्वाग्रहों
से हम सोने के अंडों से भरे गोदामों और भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की हिलोरें
मारती असीम संभावनाओं को नज़रअन्दाज कर रहे हैं।
इसे इस तरह समझा जाए। सरकार पैसे की
उगाही के लिए एक इन्फ्रास्ट्रचर बाँड जारी करती है, ‘करोड़’ रुपया विज्ञापन में खर्च करने के बाद
मुश्किल से ‘लाख’ रुपया सरकारी खजाने में आ पाता है। इंकमटैक्स, सेल्सटैक्स, वैटटैक्स, ये टैक्स, वो टैक्स इत्यादि-इत्यादि थोप-थोपकर
भी सरकार इतना धन इकट्ठा नहीं कर पाती कि चार घोटाले ढंग से हो सकें। टैक्स के बोझ
से दबी जनता काऊ-काऊ कर जान खा जाती है, विपक्ष
अलग प्राण पी लेता है। जबकि इधर क्रिकेट में, बीस ओवरों की एक सौ बीस गैंदों पर हर बार अरबों-खरबों का सट्टा खिलाकर देश
के महान सटोरिए नगदी का पहाड़ खड़ा कर लेते है। नो बॉल, वाइड बॉल भी बोनस के रूप में धन लेकर आती है। जनता तो पागल है ही क्रिकेट
के पीछे, सरकारी स्तर पर अंदरूनी इच्छाशक्ति को
जाग्रत कर यदि टूर्नामेंटों, मैचों की झड़ी सी
लगाकर फिक्सिंग और सट्टे को राष्ट्रीय खेल के तौर पर प्रमोट किया जाए तो फिर देखिए
किस तरह दना-दन धन बरसता है। सरकारी खजाना खचाखच भर जाएगा, खुशहाली आ जाएगी, देश को और क्या
चाहिए।
इसलिए, वक्त का तकाज़ा है, जैसे बहुत से धंधों को किया गया है, क्रिकेट में फिक्सिंग और सट्टे को भी अगर कानूनी शिकंजे से मुक्त कर
अर्थव्यवस्था के विकास के नए फार्मूले के तौर पर अपनाया जाए तो हमारे देश को
इन्वेस्टमेंट के लिए दुनिया के सामने भीख माँगने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
क्रिकेटर हमारे सोने का अंडा देने
वाली वे मुर्गियाँ हैं जो मैदान में ‘इशारेबाज़ी’
करके अर्थव्यवस्था पर अकूत धनवर्षा करवा सकती हैं।
इन्हें जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया जाएगा तो अर्थव्यवस्था के विकास का एक
क्रांतिकारी रास्ता ही बंद हो जाएगा। सरकार को तो फौरन से पेश्तर अर्थव्यवस्था और
देश हित में एक नया कानून बनाकर क्रिकेट में फिक्सिंग और सट्टे की कला को ‘जायज़’ करार दे देना
चाहिए। कोई नई बात तो है नहीं, पहले ‘सूदखोरी’ भी जुर्म होती थी,
मगर अब तो सरकारी बैंकें भी ‘सूद’ वसूलती हैं, क्योंकि वह कानूनन जायज़ है। इसी तरह फिक्सिंग और सट्टे को भी जायज़ बना
दिया जाए तो देश गरीबी-बेरोज़गारी के दलदल से बाहर निकल सकता है।
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दोनों को वैधानिक कर देने से क्रिकेट और भी रोचक हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंrochak prastuti .
जवाब देंहटाएंहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
Well said...
जवाब देंहटाएंबढ़िया सार्थक समसामयिक व्यंग ..
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