//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
डीयर हाईकमान्ड !
माँबदौलत का परनाम पहुँचे.......
शेरों वाली के आशीर्वाद से फिर से
चुनाव की घोषणा हो गई है। इस दफे घर-वालों, रिश्तेदारों, यारों-दोस्तों, और खास लोंडे-लपाड़ों की तरफ से हमारे ऊपर तगड़ा प्रेशर है,
सभी कह रहे हैं कि बहुत साल हो गये पार्टी के लिए ‘गुंडागर्दी’ करते अब तो ‘टिकट’ मिलना ही चाहिये।
ऐरिये के सारे बदमाश, गुंडे-मवाली, चोर-उचक्के, ड्रग-डीलर माफिया सरगना और तस्कर बड़ी
आस लगाए बैठे हैं कि कब हम मंत्री-विधायक बनें और उन्हें एक शान्तिपूर्ण वातावरण में
चैन की बंसी बजाते हुए तरक्की करने का मौका मिले। हाँ, जनता ज़रूर डरी हुई है, कि अगर हमें टिकट
मिल गया, और हम जीत गए, तो फिर क्या होगा ? लेकिन जनता से
हमें क्या लेना देना, ‘वोट’ ही तो चाहिये.... उसके लिए तो हमारे लौंडे-लपाड़े ही काफी हैं, सब सम्हाल लेंगे।
विरोधी पार्टियों के लोगों ने अपने ‘उम्मेदवारों’ को पोस्टर,
झंडे-डंडे भी बाँटना शुरू कर दिये हैं.....हमने तो यहाँ
तक सुना है, कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए पार्टी
से फन्ड भी मिल चुका है, और ससुरों ने
फन्ड खाना शुरू भी कर दिया है। लेकिन हमारी पार्टी ने अभी तक अपना ‘उम्मेदवार’ तक डिक्लेर नहीं
किया है, और ना ही चाय-पानी के लिए पैसे भिजवाएँ हैं।
आप को बता दें, कि ‘उम्मेदवार’ डिक्लेर करने में ज़्यादा देर की गई,
तो विरोधी पार्टी वाले शहर के सारे धन्ना सेठों के यहाँ
से पैसा बटोर चुके होंगे। वैसे तो हमने लोगों पर अड़ी डालकर उगाही चालू कर दी है,
लेकिन ‘मुन्ना पाँड़े’
उसमें बेवजह टाँग अड़ा रहा है।
हमें अन्दरूनी तौर पर खबर मिली है,
कि आप लोग इस बार भी ‘मुन्ना पाँडे़’ को टिकट देने की फिराक में हो,
जिसने पार्टी फन्ड खा-खाकर चार-चार बंगले बना लिये। दो
बंगलों में दो कार्पोरेशनों के दफ्तर चल रहें हैं, एक में उसकी फैमिली रहती है, और एक ‘चंदा बाई’ को दे रखा है।
लोगों से पैसा ऐंठ-ऐंठकर उसने दर्जनों बसें-ट्रकें चला लीं। सारे सरकारी विभागों
से, यहाँ तक कि पुलिस-थानों से भी बिना नागा
हफ्ता वसूली करता है, और हर साल ट्रांसफर में लाखों रुपये
डकार जाता है, पार्टी को पता भी नहीं चलता। हर बार
एक ही एक आदमी को ऐसा सुनहरा मौका देना अच्छी बात नहीं है, आखिर हमारी पार्टी एक ‘परजातांत्रिक
पार्टी’ है, सभी को
बराबर का मौका मिलना चाहिये।
माँबदौलत इस दफे पार्टी का सबसे
योग्य उम्मेदवार है। इस बात को आप चाहे तो क्षेत्र के किसी भी थाने से पता कर सकते
हो। पिछले साल सबसे ज़्यादा केस अगर दर्ज हुए हैं तो हम पर, सबसे ज्यादा वारंट ईशू हुए तो हमारे नाम, सबसे ज़्यादा जमानतें हुई तो हमारी, और सबसे ज़्यादा ज़िला-बदर हुए तो हम। मगर मजाल है कि एक बार भी जेल गए हों
। क्या करें, यह तो जन सेवा है, करना ही पड़ती है, वर्ना
जनता की नज़र में नेता कैसे बने रह पाएँगे। अब आप को क्या-क्या बताएँ, आपको सब कुछ पता ही है हमारे बारे में, लेकिन फिर भी एक लोकल लेखक से अपना ‘बायोडाटा’ बनवा कर भेजे दे रहें हैं, जिससे हमारी राजनैतिक योग्यता के बारे में आपको कोई गलत-फहमी,
शकोशुबहा ना रहें।
माँबदौलत ज़्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं
है, राजनीति में वैसे भी पढ़ाई-लिखाई का क्या काम
। बचपन में एक बार माटसाब का सिर फोड़कर जो भागे तो आज तक पाठशाला की तरफ मुड़कर
नहीं देखा। आपका आशीर्वाद रहा तो चुनाव जीतकर, मंत्री बनकर फिर शायद उस ओर जाना हो जाए। स्कूल भले ही ना गएँ हों,
लेकिन शहर के हर स्कूल-कॉलेज में माँबदौलत की तूती बोलती
है। बच्चे हर साल पहले दर्जे में ऐसे ही नहीं पास होते, मास्साबों की गर्दन पर छुरा अड़ाकर, धड़ल्ले से नकल करवाते हैं, तब कहीं जाकर शहर
के लड़के-लड़कियाँ देश भर में नाम और रुपया कमाते हैं । अब उस ‘बैजू घसियारे’ को ही ले लो जो ‘हाईकोरट’ में काला लबादा
चढ़ाए घूमता रहता था और आजकल लाल बत्ती दर्जे पर एक कार्पोरेशन का अध्यक्ष है,
उसने कानून की परीक्षा हमारी कलारी में बैठ कर दी थी।
चार हॉयस्कूल के लड़के लगाए थे कापी लिखने के लिए, ‘उँनीवर्सिटी’ में ‘टॉप’ किया था। क्यों ना करता बैजू हमारा
लँगोटिया यार जो ठहरा। हमारे सारे लफड़े-झगड़े बैजू ही देखता है। कानून का इतना
माहिर कि एक बार भी सज़ा चिपकने नहीं दी। आपके यहाँ भी कोई नालायक छोरा हो तो भेज
दो इधर, जो चाहो इम्तहान दिलवा देंगे, पास करवाने की गारन्टी हमारी। कुलपति की कालर पकड़कर मार्कशीट
निकलवा लाएँगे।
शहर में हर किस्म के दंगा-फसाद कराने,
और उन्हें शानदार ढंग से सफल बनाने में हमने हर बार
पूरा-पूरा योगदान दिया है। चाकू, छुरा, तलवार, कट्टा, वगैरह चलाने में माँबदौलत का कोई मुकाबला नहीं है। बम बनाना
और कहीं भी फेंककर दस-बीस लोगों को चित कर देना हमारे बाएँ हाथ का खेल है। चुनाव
में इस सबकी बहुत ज़़रूरत पड़ती है। अगर हम ‘उम्मेदवार’
हुए तो इन कामों के लिए बाहर से मैन-पावर और असला बुलाने
की ज़रूरत नहीं पडे़गी, सब कुछ हम और हमारे लौंडे-लपाडे़
सम्हाल लेंगे...... खर्चा भी बचेगा। ‘मुन्ना पाँडे़’
इस मामले में हमसे कई गुना कमज़ोर पड़ता है। उससे तो
दिवाली में ‘टिकली’ भी फोड़ने को कहो तो जूते छोड़कर भाग खड़ा होता है।
अफीम, चरस, गाँजा, भाँग, अवैध शराब, कालाबाज़ारी, ऐसा कोई गैरकानूनी धंधा नहीं है,
जो हमारे अलावा कोई ओर चला ले। इस मामले में हम ‘मुन्ना पाँडे़’ के भी बाप हैं।
हमारे सैंकड़ों लौंडे तो इसी रोज़गार में लगे हुए है और हमारे आशीर्वाद से दिन-रात
तरक्की कर रहें हैं।
माँ-बहनों के बीच भी हमारा अच्छा
खासा रुतबा है। पूरे शहर भर में हमारे अलावा कोई उनकी इज़्ज़त पर हाथ नहीं डाल सकता,
इससे माँ-बहनों में हमारी काफी अच्छी छवि बनी हुई है।
शहर भर के शातिर-बदमाश हमारे इशारे
पर उठक-बैठक लगाते हैं। चुनाव के दिनों में सबको बूथ केप्चरिंग, पेटी लूटने, फ़र्ज़ी वोट डलवाने
के काम में लगा देते हैं। हमने भी अपने राजनैतिक कैरियर की शुरूआत ‘मुन्ना पाँडे़’ के लिए बूथ लूटकर
ही की है, लिहाज़ा इस क्षेत्र में हम काफी अनुभवी हैं,
और आज के जमाने में चुनाव के लिए यह सबसे बड़ी ‘कोलीफिकेशन’ है। चुनाव जीतने
की सौ टका गारंटी.......।
हाँ तो डीयर हाईकमान्ड ! हमने बहुत
थोड़े में अपनी सारी खूबियों और अनुभवों का खुलासा कर दिया है, आशा है आप विस्तार में समझ गए होंगे। ना समझे हों, तो समर्थकों का ट्रेन भर छोटा सा डेलीगेशन लेकर दिल्ली आ जाते
हैं, वहीं सारी बातें समझा देंगे, मगर हमारे समर्थकों के हाथों दिल्ली वालों की जेबों पर जो कट
लगेगा उसकी जिम्मेदारी आपकी और पार्टी की होगी।
एक और बात हमने सुन रखी है, कि बगैर लेन-देन टिकट नहीं कटती.....। साले कमीनापन नहीं
छोड़ोगे.....! हमसे भी लोगे ! कोई बात नहीं, कमाते ही इसलिए हैं ताकि आडे़ वक्त में किसी को खरीद सकें। हमारी तरफ से
बेफिक्र रहना, जितना कहोगे ‘हवाले’ से भिजवा देंगे.......कम पडे़गा तो
और भिजवा देंगे.....और कम पडे़गा तो और भिजवा देंगे.......सौ-पचास रुपए खर्च हो
जाए तो कोई गम नहीं, हमें तो बस ‘टिकट’ चाहिये ही चाहिये।
आज खोपड़ी ठीक है सो इतनी सब मिन्नत
भी कर ली, इसके बाद भी अगर ‘हमें’ टिकट देकर अपना योग्य ‘उम्मेदवार’ नहीं बनाया तो
समझ लो हाईकमान्ड.....! भाड़ में गए तुम और चूल्हे में गई तुम्हारी पार्टी......।
चुनाव चिन्ह रखेंगे ‘गुप्ती’, और ‘इंडिपेंडेंट’ लड़ जाएँगे। उखाड़ लो हमारा क्या उखाड़ते हो। हमारे रहते कोई माई का लाल यहाँ
से जनता का ‘पिरतिनिधि’ बनने की हिम्मत नहीं कर सकता, क्योंकि
चुनाव में तो हर हाल में हम ही खडे़ होंगे, हम ही वोट डलवाएँगे, और हम ही
जीतेंगे...... फिर समर्थन के लिए घूमते रहना पीछे-पीछे....।
तुम्हारा मॉबदौलत
पता- गुंडों की छावनी
बन्दूकपुरा, थाना डकैतगंज
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ऱाष्ट्रीय साप्ताहिक पञिका शुक्रवार के 24 अक्टूबर 2013 अंक में प्रकाशित
आपको को टिकटें थोक के भाव मिल सकती हैं जिनहें ब्लैक भी किया जा सकता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सटीक व्यंग्य बहुत बधाई आपको ।
जवाब देंहटाएंबड़ी उम्मीद से रखा है कदम, आपकी दुनिया में यह पहला कदम।
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