//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
वे नाहरमुँह भागे चले आए और बेहद
शर्मिंदगी से बोले-‘‘कम्बख्तों ने कहीं का नहीं छोड़ा,
जबरदस्ती ‘टिकट’ पकड़ा दिया। ऊपर से धमकाया भी है कि-‘‘अगर ज़मानत ज़ब्त हुई तो बेटा तेरी खैर नहीं!’’ उनके साथ घटी इस त्रासद घटना से मुझ पर भी ‘सकते’ का दौरा सा पड़ गया है।
वे सुबकते हुए अपनी पीड़ा बयान कर रहे
थे-‘‘ भगवान का दिया हुआ सब कुछ है अपने पास,
मगर उस निर्दयी ने बिना माँगे चुनाव का टिकट दिलवाकर इस
गरीब पर इतना बड़ा अन्याय किया है कि मत पूछो। पता नहीं किस जन्म का पाप है जो आज
यह दिन देखने को मिल रहा है। कभी किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत नहीं आई,
मगर अब वोटों के लिए हाथ फैलाकर भीख कैसे माँगू समझ में
नहीं आ रहा है। जी करता है कि गले में फाँसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर लूँ।’’
मैंने उन्हें सात्वना देते हुए कहा-‘‘देखों, निराशा भरी बातें
मत करों, जो होना है वह तो हो गया। नाम वापसी के समय
तक कुछ हो सकता हो तो देख लो, किसी राष्ट्रीय
स्तर के नेता से जुगाड़ हो तो सिफारिश लगवाकर टिकट कैंसल करवाने की कोशिश कर लो,
पैसे का मुँह मत देखना, जितना खर्च करना पड़े कर लो, तब भी अगर कुछ न
हुआ तो फिर लड़ो भैया, ईश्वर की मर्ज़ी के आगे हम भी क्या कर
सकते हैं। अब जब ओखली में सर डल ही गया है तो भलाई इसी में है कि परिस्थितियों का
सामना करो।’’
वे बोले-‘‘क्या खाकर सामना करूँ? विरोधियों की
प्रचंड लहर चल रही है और इन निकम्मों, बदमाशों
के पिछले सढ़सठ सालों के कुकर्म मेरे माथे पर आ गए हैं। मैं तो कम्बख्त परचा दाखिल
करने से पहले ही हारा हुआ केंडीडेट हूँ। मोहल्ले वालों तक के वोट नहीं पड़ने वाले।
घर वाली भी शर्तिया ‘नोटा’ का बटन दबा कर आएगी।’’
मैंने कहा-‘‘देखों भैया, तुम्हारे सर पटकने से न वोटर पिघलने
वाला है और न चुनाव आयोग तुम्हें निर्विरोध विजेता घोषित करने वाला है। हिम्मत
हारने से काम नहीं चलने वाला मित्र, चुनावी व्यूहरचना
बनाना प्रारंभ करो।’’
वे बोले-‘‘काहे की व्यूहरचना! पार्टी वालों ने साफ कह दिया है कि एक पैसा नहीं देंगे,
अपनी गाँठ से लगाओ। तुम्हीं बताओं हारने के लिए कोई अपनी
गाँठ की पूँजी खर्च करता है। राजनीति में आदमी कमाने के लिए जाता है या गँवाने के
लिए! मति मारी गई थी मेरी जो पार्टी की सदस्यता ले ली, किसे पता था कि कम्बख्त चुनाव गले पड़ जाएंगे। पार्टी का तमाम कार्यकर्ता
भी विरोधी उम्मीद्वार से बारगेनिंग में लगा है, एक कमबख्त तो मेरे ही वोट का सौदा कर आया।’’
उपसंहार-कुछ समय बात सुना गया कि वे
विरोधी पार्टी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने की विरोधी पार्टी की शिकायत पर चुनाव
आयोग में तलब किये गए, जहाँ उन्होंने अपनी पार्टी के खिलाफ
मोर्चा खोलते हुए चुनाव आयोग को उसकी मान्यता समाप्त करने की गुजारिश की है।
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हारने का संभावित दुख, कौन समझे?
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