//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
मरीज़ों के वृहद संसार में कुछ विशिष्ट किस्म के मरीज़ होते हैं जिनकी विद्वता
के सामने पुश्तैनी मरीज़ तो क्या अच्छे-अच्छे अनुभवी डॉक्टर तक पानी भरते नज़र आते
हैं। बीमारी के क्षेत्र में इन विद्वान मरीजों का बड़ा आतंक होता है। ये यदि किसी
डॉक्टर को दिखाने पहुँच जाएँ तो इन्हें देखते ही डॉक्टर की रूह कॉप जाती है। यहाँ
तक कि किसी डाक्टर का पर्चा लेकर जब ये विद्वान मरीज़ मेडिकल स्टोर पर आ खड़े होते
हैं तो मेडिकल स्टोर वाला सू-सू का बहाना बना कर खिसक लेता है। कारण, वे दवा भले ही 5 रुपये की लें मगर
विद्वता पाँच हज़ार रुपये की झॉड़ते हैं। मसलन-यार ‘फला’ कम्पनी के फार्मूले में सोडियम
कम है, इसलिए
‘ढिका’
कम्पनी की ही दवा
देना या - सोडियम के रेट अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में कम हो गए हैं, इस कम्पनी ने दवा के दाम
कम नहीं किये, लूट मचा रखी है आप लोगों ने!
किसी मरीज़ को देखने जाएँगे तो इतनी इन्क्वायरी करेंगे कि डॉक्टर भी क्या करता
होगा। कब से है ये बीमारी ? पहले किसी को दिखाया ? इंडोस्कोपी करवाई थी ? खाने में क्या खाया था ?
मसाले-वसाले
ज्यादा खाते हो क्या ? जंक फूड तो नहीं खाया? तेल कौन सा इस्तेमाल करते हो?
मिलावटी चीज़ें मत
लाया करो बाज़ार से! नल का पानी टेस्ट करवाया? एक आर.ओ. खरीद लो! हाजमा कैसा है?
रात को इसपघोल
खाया करो! सुबह तांबे के लोटे का पानी पीया करो, हम तो रोज वही पीते हैं।
शहर के सारे डाक्टरों का कच्चा चिट्ठा इनके पास होगा। पूछेंगे, किसको दिखाया है ?
अरे उस गधे को
क्यों दिखाया, उसे तो आला पकड़ना भी नहीं आता ? जरूर नकल करके डाक्टर बना होगा। क्या फालतू के टेस्ट
लिखे हैं? अरे, ‘इस’ बीमारी में ‘उस’ टेस्ट की क्या ज़रूरत है! लूटते
हैं साले, कमीशन बंधा है बदमाशों का। डायबीटीज़ है? इन डाक्टरों के चक्कर में मत आना !
डाक्टर तो बेवकूफ होते हैं, हमें देखों, बीस साल से है, खूब मीठा खाते हैं, कुछ नहीं हुआ, टन्न रखे हैं। बी.पी. है?
किसी को दिखाने की
ज़रूरत नहीं है, हम खा रहे हैं बीस साल से, वही दवा तुम भी खा लो, कुछ नहीं होगा, गारंटी है।
कभी डॉक्टर को दिखाने जाएँगे तो चेंबर में दो सौ रुपट्टी फीस के बदले में
डाक्टर के दो घंटे खा जाएंगे। बीमारी और सह बीमारियों के साथ-साथ उन पर चल रहे
शोधों व प्रचलित दवाओं के बारे में एक छोटा-मोटा शोध प्रबंध सा दिमाग में लेकर
डॉक्टर पास बैठेंगे और बेचारे डाक्टर के प्राण पी जाएंगे।
वैसे एक बात तो हैं, ऐसे विद्वान मरीज भले ही जी का जंजाल हों मगर इनकी संगत से
नए-नए अस्तित्व में आए मरीजों को बहुत ही राहत महसूस होती है, लगता है जैसे दुनिया में
यही एक शख्स उनका सगा है, बाकी तो सब लूटने के लिए उधार बैठे हैं।
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बहुत खूब लिखा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्मिता जी।
हटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंदुखड़ा सुनने की किसी को कहाँ फुर्सत!
धन्यवाद कविता जी।
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