//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
दुनिया के तमाम मुल्कों ने
तमाम क्षेञों में तरक्की की है, हमने शिक्षा के क्षेञ में झंडे गाड़े हैं।
अंग्रेजों के ज़माने में जब लॉर्ड मैकाले ने भारतीय शिक्षा पद्धति को बनाने के लिए
अपना सिर खपाया तब उसने ख्याब में भी नहीं सोचा होगा कि कालान्तर में दुनिया भर
की शिक्षा व्यवस्थाएँ उसकी बनाई भारतीय शिक्षा व्यवस्था से बुरी तरह पिछड़ जाएंगी।
बताइये भला, बिना पढ़े-लिखे, बिना स्कूल-कॉलेज जाए आदमी ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट,
डाक्टर-इन्जीनियर की डिग्रियाँ हासिल कर ले, इससे क्रांतिकारी उपलब्धि और क्या
हो सकती है? दूसरा कोई बड़ा से बड़ा मुल्क हमारी इस अभिन्न उपलब्धि के आसपास भी
नहीं फटक सकता।
प्रिटिंग प्रेस के अविष्कार
ने दुनिया को बस मोटी-मोटी किताबों का बोझ दिया, मगर हमने उस पर फर्जी डिग्रियों
की छपाई करवाकर अपने छाञों के सर पर उस बोझ का साया भी नहीं पड़ने दिया। फर्जी
डिग्रियों की छपाई के इस कौशल से हमने शिक्षा को तो स्तरीय बनाया ही बनाया है,
छपाई की कला में भी हम इस कदर सिद्धहस्त हुए हैं कि एक बार असली डिग्री को आसानी
से नकली डिग्री साबित किया जा सकता है परन्तु नकली डिग्री को नकली डिग्री साबिल
करने में विशेषज्ञों को भी नाको चने चबाना पड़ जाता है।
किताबी कीड़ों का दुनिया में
हमेशा आतंक रहा है। कम्बखत सारी डिग्रियाँ खुद ही हड़प लिया करते रहे हैं। न केवल
डिग्रियाँ बल्कि आई.ए.एस,
आई.पी.एस से लेकर चपरासी तक की
नौकरी पर इन्हीं का कब्ज़ा रहता आया है। हमने देश को इस कलंक से मुक्ति दिला दी। हमने
नकल संस्कृति का तूफानी विकास और विस्तार कर देश के कोटि-कोटि ‘नालायकों’
तक डिग्रियों की सप्लाई सुलभ करवाई ताकि वे भी सम्मानजनक नौकरियों में जाकर देश
सेवा करे और गौरवान्वित महसूस कर सकें। कुछ प्रतिभाशाली लोगों ने तो अपने
पुरुषार्थ के दम पर देश की संसदीय राजनीति का मान बढ़ाने में सफलता पाई है।
साधु-साधु।
एक ज़माना था लोग फर्जी शब्द
से थर-थर कॉपते थे और चुपचाप शराफत के लिबास में लिपटे स्कूल-कॉलेज और
यूनीवर्सिटीज़ में पढ़-पढ़ कर चश्में वालों का धंधा चमकाया करते थे। फर्जी डिग्रियाँ
एक दूर की कौड़ी थी लिहाज़ा हाड़ तोड़ मेहनत और मशक्कत करके असली डिग्री की भीख सी
माँगनी पड़ती थी। हमने परिस्थिति में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया। डिग्रियों को चना
जोर गरम और मुँफली के ढेर की तरह गली-गली में बेचने के लिए पहुँचवा दिया । जिसको
जो विषय पसन्द हो, आओ, पैसा फैको, डिग्री तुलवाओ और चलते बनो।
हमारा दृढ़ संकल्प है कि भविष्य
में हम अपनी सेवाओं का व्यापक विस्तार करेंगे। हमारे आदमी साथ में डिग्रियों का
कैटलॉग लेकर घर-घर जाकर लोगों की पसन्द की डिग्रियाँ बेचेंगे। ऑन लाइन खरीदारी
की सुविधा भी हम शीघ्र ही चालू करने वाले हैं। आप समुचित भुगतान कर अपनी मन पसन्द
डिग्री, अपनी सुविधा के वर्ष और कॉलेज-यूनीवर्सिटी के हिसाब से हमारी साइट से सीधे
डाउनलोड कर सकेंगे।
सचमुच, शिक्षा के क्षेञ में
यह एक युगान्तरकारी पड़ाव है। हमने कसम खाई है कि देश में शिक्षा के पारम्परिक ढाँचे
को नेस्तोनाबूद करके एक नई रोशनी का मार्ग प्रशस्त करेंगे। फर्जी डिग्रियों के
दम पर हम अपने इस देश को दुनिया का सिरमोर बना कर ही दम लेंगे।
-0-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें