//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
सिलेक्शन कमेटी के चेयरमेन टेबल के नीचे छुपे हुए हैं
और सदस्यगण मुँह छुपाए इधर-उधर देख रहे हैं। चुन्नू बाबू का विधवा विलाप सप्तम सुर
में चल रहा है-‘‘भ्याSSSS भ्याSSSS भौंSSSS ! अरेरेरेरेरे! ठठरी बंध गई मेरी
तो। मखाने फिक गए रे। अरे मैं तो जीते जी मर गया। इन बदमाशों ने मुझे कहीं का नहीं
छोड़ा! भ्योSSSS भौंSSSS इत्यादि-इत्यादि!’’ गनीमत थी कि चूड़ियाँ नहीं थी चून्नू बाबू के हाथों में वर्ना
वे उन्हें भी पत्थर पर पटक-पटक कर फोड़ देते।
एक सज्जन चुन्नू बाबू को सांत्वना बंधाने के अंदाज में
बोले-‘‘हमें देखों, हमारा भी टिकट कट गया है। मुन्नू बाबू, टुन्नू बाबू, गुन्नू बाबू को भी इस चेरमेन
के बच्चे ने धोका दिया है और उनकी जगह अपने सालों-सालियों को टिकट दे दिया है। मगर
देखों, हम सब क्या तुम्हारी तरह ‘रुदाली’ बने हुए हैं? धैर्य से काम लो चुन्नू बाबू। जिस दिन अपना दाँव लगेगा अपन इस
चेरमेन को पटक-पटक कर मारेंगे। चेरमेनी भूला देंगे सुसरे की।’’
चुन्नू बाबू पर इस सांत्वना का कोई असर नहीं हुआ। वे
उसी तरह दहाड़े मार-मार कर रोते रहे-‘‘मेरे बीवी-बच्चों की हाय
लगेगी तुझे चेयरमेन। तूने मेरा टिकट काटकर मुझे रोजगार मिलने से पहले ही बेरोजगार
कर दिया। कीड़े पडेंगे तुझमें कीड़े। तूने मेरे बच्चों के मुँह से निवाला छीना है, भूखों मरने की नौबत डाली है। तू नर्क में जाएगा चेयरमेन नर्क
में।’’
फिर कोई शुभचिंतक बोला-‘‘शांत
हो जाओ चुन्नू बाबू। होनी को कौन टाल सकता है। शांत हो जाओ। सब ठीक हो जाएगा।’’ लेकिन चुन्नू बाबू बिफरते ही चले गए-‘‘क्यों शांत हो जाऊँ ? इनके बाप की जायदाद है क्या ‘टिकट’ जो जिसे मर्जी हो दे देगा और
जिसका मर्जी हो काट देगा! इतने सालों से नेतागिरी जमाने में लगे हैं। न जाने
कितनों की हड्डियाँ तोड़ी और घर उजाड़े। लाखों रुपया और घरबार सब फूँक दिया
उम्मीद्वारी के लिए। इलेक्शन की पूरी तैयारी कर के रखी है। खुद मैंने और
बीवी-बच्चों ने बैठकर अपने हाथों से बम-हथगोले बनाए हैं। कमजोर बूथों पर फील्डिंग
लगाने का पूरा प्लान भी एडवांस में तैयार कर रखा है। मगर इस चेयरमेन की औलाद ने
मेरा पत्ता ही काट दिया। हाय हाय हाय हाय! अब मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊँ! लाओ रे कोई मुझे थोड़ा सा ज़हर ही ला दो। वही
खा-खिलाकर अपनी और अपने बीवी बच्चों, भाई-भतीजों, मामा-भांजों और तमाम नाते-रिश्तेदारों सबकी ईहलीला यही खत्म
कर लूँ। हाय, क्या करेंगे बेचारे अब जी
कर जब मेरा ‘टिकट’ ही
काट दिया नासपीटों ने। न मैं इलेक्शन में खड़ा हो पाऊँगा न मंत्री बन पाऊँगा। सारे
खानदान के सपनों पर पानी फेर दिया इस चेयरमेन ने। भ्योSSSS भ्योSSSS कर मुन्नू बाबू ने अपना
रुदन सप्तम से भी ऊँचाई पर पहुँचा दिया।
प्रचंड दुःख, वेदना और संताप में अब
चुन्नू बाबू ने ज़मीन पर अपना सिर पटकना चालू कर दिया, जैसे घर का कोई ‘सरपरस्त’ मर गया हो। कुर्सी अगर सर पर चढ़ जाए और हाथ न आए तो ऐसा ही
होता है। मगर, इससे पहले कि चुन्नू बाबू टिकट कटने के गम में अपना सिर तोड़ लेते, तमाशा
देख रहे पार्टी कार्यकताओं ने दौड़कर उन्हें पकड़ लिया। वे नहीं चाहते थे कि चुन्नू
बाबू जैसी प्रखर प्रतिभा लोकतंत्र के घाट पर सिर पटक-पटक कर मर जाए। आखिर भारतीय
राजनैतिक रंगमंच पर प्रतिभाशाली नौटंकी बाजों की भारी माँग जो है भाई।
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