//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
धुर खोजियों ने खुलासा किया है कि चीन से खरीदी गई कोरोना
टेस्टिंग किट में वे फिर कमीशन खा गए। ताज्जुब है, कण-कण में व्याप्त चौकीदारों के, श्वानों की माफिक सतर्क होने के बावजूद
कम्बख्त वे कमीशन खाने में सफल हो गए, वह भी न
खाने वालों की नाक के नीचे से!
चलो खाया तो खाया, मगर कितना
खाया, 18-19
करोड़ बस? इससे ज़्यादा तो चीटियाँ खा जाती हैं। पारम्परिक भारतीय
कमीशनखोरों के लिहाज़ से देखा जाए तो यह तो ऊँट के मुँह में ज़ीरे के बराबर है। या
कहें, बिल्ली की
छिच्छी। एक ज़माने में लोग हाथी की लीद के बराबर खा जाते थे, पता ही नहीं पड़ता था। दरअसल हाथी से ज़्यादा
लीद करने वाला जानवर इस धरती पर है भी या नहीं मैं नहीं जानता लेकिन बिल्ली की
छिच्छी की जगह चीटी की छिच्छी पकड़ ली जाए तो हाथी की लीद के साथ जो अनुपात बनता है, उतना कमीशन तो पहले के ज़माने में चलते-फिरते
खा लिया जाता था। देखा जाए तो टेस्टिंग किट कमीशनखोरों ने ज़ीरे के बराबर कमीशन
खाकर अपनी बिरादरी की नाक कटवा ली है।
वैसे मुझे तो इसमें भी काफी षड़यंत्र की बू आ रही है। छिच्छी
और लीद की बात की जाएगी तो बदबू तो यकीनन आएगी ही। कमीशनखोरी है ही संडांध वाला
काम। ऐसा करिए, आप घर में
पड़ा हुआ कोई भी चाइनीज़ आयटम उठा कर देख लिजिए, समझ आ
जाएगा। मैंने लॉक डाउन के पहले एक चार्जेबल चाइनीज़ इमरजेंसी लाइट खरीदी थी, मात्र 60 रुपए में। उसमें एक झकास लाइट के साथ
दूर तक अंधेरे में दिखा देने वाली टार्च भी है। और तो और 2 सेल उसके साथ एक्स्ट्रा
दिए गए थे बिल्कुल मुफ्त। टाँगने की, खड़ा करने
की, हाथ में
पकड़ने की सुविधा अलग। एक स्विच है साथ में जिससे इमर्जेंसी लाइट और टार्च दोनों की
रोशनी कम ज़्यादा की जा सकती है। अर्थात काफी तामझाम है उसमें। इतनी सारी सुविधाओं
के साथ इतनी बड़ी चायनीज़ लाइट मेरे हाथ में मात्र 60 रुपए में पहुँच गई तो सोचिए वह
चायना से कितने में चली होगी! इसीलिए चाइनीज़ टेस्टिंग किट के कमीशनखोरी से पूर्व
के असली दामों पर भी मुझे गहरा शक है। कुछ तो झोल है।
इतनी बड़ी टार्च 60 रुपए की और ज़रा सी टेस्टिंग किट 250 रुपए
की जो 600 में टिपा दी गई, शक की
गुंजाइश तो बनती है भई। मेरे हिसाब से तो 5-10 रुपए से ज़्यादा कीमत उसकी हो ही
नहीं सकती। सबका कमीशन वगैरह जोड़कर ज़्यादा से ज़्यादा 20-25 रुपए किसी भी चाइनीज़
आयटम के लिए एकदम वाजिब दाम प्रतीत होते है। भाई साहब, चाइनीज़ इलेक्ट्रॉनिक घड़ियाँ 20-20 रुपए में
मुंफली की तरह ढेर में मिलती हैं अपने देश में, तो टेस्ट
किट 250 रुपए की कैसे? बहुत नाइंसाफी है।
मुझे तो लगता है चौकीदारों को तगड़ा धोका दिया गया है। क्या
समझते हो आप कमीशनखोरों को, पिछले 73
सालों के अनुभव के साथ कमीशन खा रहे हैं वो। ऐसे ही बिल्ली की छिच्छी खाने वाले
संस्कार नहीं हैं उनके। उन्हें हाथी की लीद खाने की आदत है। कोई माने या न माने, ज़रूर
उन्होंने 5-10 रुपए वाली टेस्टिंग किट 250 रुपए में खरीदना दिखाकर 600 रुपए में
बेच कर अच्छे खासे अनुपात में कमीशन खा लिया है।
इधर बहुत सारे लोगों का यह मानना है कि कोरोना की महामारी
को सुनहरे अवसर के रूप में देखना चाहिए। टेस्टिंग किट सप्लायरों ने इस अवसर को
चतुराई से भुना लिया। हमारे पास कोरोना के व्यापक हमले से निबटने के लिए साधन तो
है नहीं। हम यहाँ वहाँ दुनियाभर से खरीदारी करेंगे। तुम कमीशन खाने के लिए तैयार
रहो। इससे अच्छा अवसर और कब मिलेगा।
अवसरों की भरमार है साहब। 3
रुपए का मास्क 50 रुपए में बेचो, यह है अवसर। सब्ज़ी-भाजी, आटा-दाल-चावल मनमाने दामों पर
बेचो, यह है अवसर। पूरी दुनिया हिली
हुई है उसे मनमाने दामों पर माल-असबाब निर्यात करो, यह है
अवसर, यही है अवसर। लगे हाथों देश को
मनमाने दामों पर जीवन रक्षक वस्तुएँ बेच मारो, इससे सुनहरा अवसर और फिर कभी
नहीं मिलेगा ।
कमीशनखोरी तो हमारी रगों में खून की तरह बह रही है । हम सस्ते के चक्कर में खरीद लेते हैं , सबके वारे नं्यारे ।
जवाब देंहटाएंठीक कहा। शुक्रिया।
हटाएंबहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दोस्त।
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