//ट्रम्प की घास - प्रमोद ताम्बट//
ट्रम्प
ने हमें घास नहीं डाली। कितनी बड़ी ट्रेजडी है। इतनी बड़ी ट्रेज़डी है कि इतिहास
के गोदाम में इस साइज की दूसरी कोई ट्रेजडी हरगिज़ नहीं है। इतनी बड़ी ट्रेजडी तो
ट्रम्प के जानी दुश्मनों के साथ भी नहीं हुई जिन्हें घास डलने की रत्ती भर भी उम्मीद
नहीं थी, हम
तो फिर भी उसके जिगरी दोस्त थे, और
हमें पूरी उम्मीद थी कि हमारे सामने घास डलेगी,
पक्का
डलेगी । फिर भी ट्रम्प ने हमें बिल्कुल घास नहीं डाली।
हमने
घास डलवाने की बहुत कोशिश की, बहुत
हाथ-पैर मारे,
बहुत मिन्नतें कीं ताकि किसी तरह हमें भी ट्रम्प की घास चरने का मौका मिल जाए ।
लेकिन ट्रम्प नहीं पसीजा। पता नहीं कौन सा पाप हमसे हो गया कि हम ट्रम्प की घास के
पहले नेचुरल हकदार होने के बावजूद अमरीकी ओर से घास हमारे पास फटकने भी नहीं दी
गई।
हालांकि
ट्रम्प के पास बहुत सारी घास मौजूद है। घास के बड़े-बड़े खेत-खलिहान,
बड़े बड़े गोड़ाउन है उसके पास। कोई कमी नहीं उसके पास घास की। लेकिन उसने हमें
नहीं डाली। पता नहीं क्यों नहीं डाली। थोड़ी सी डाल देता तो कोई कम तो पड़ जाती
नहीं उसे घास ? क्या
बिगड़ जाता उसका अगर तनिक सी हमें भी डाल देता । हम कौन उसकी घास खाकर भाग रहे थे।
ट्रम्प
के पास भाँति-भाँति की घास है। हरी-हरी चाहो तो हरी-हरी। सुनहरी चाहो तो सुनहरी,
सूखी सट्ट,
जिसे भूसा कहते हैं वह भी। और तो और रंग-बिरंगी बेहद आकर्षक डिज़ाइनर घास भी है
उसके पास। कमबख़्त डालता तो हम कितने अच्छे से घास चरते। दुनिया देखती कि हमारी
घास चराई भी क्या घास चराई है। लेकिन हमारी क़िस्मत में ही नहीं थी ट्रम्प की घास,
इसलिए तो उसने ज़रा सी भी नहीं डाली ।
इतनी
सारी घास है ट्रम्प के पास कि वह बैठे-बैठे सारी दुनिया को चरा सकता है और उसने
चराई भी । बस हमें चराना भूल गया। जाने कैसे भूल गया। बादाम तो हम बहुत एक्सपोर्ट
कर रहे हैं अमेरिका को। फिर भी भूल गया। चराना भूल गया या जानबूझकर नहीं चराई यह
तो वही जाने परंतु वह मेहरबानी करके हमें भी थोड़ी सी घास डाल देता तो उसके बाप का
क्या कुछ चला जाता?
ट्रम्प
घास डालता तो हम बड़ी शिद्दत से उसे चरते। तिनका-तिनका चर-चर कर हम घास को पूरा चर
जाते। एक दाना भी ज़मीन पर नहीं छोड़ते कि कोई और आकर उसे चर जाए। हम घास के एक-एक
तिनके का पूरा मान रखते और पूरे सम्मान के साथ उसे उदरस्त करते। हम घास को रबड़ी-मलाई
की तरह चाट-चाटकर पूरा चट कर जाते। पूरी दुनिया को नाच-गाकर बताते कि हमें ट्रम्प
की घास चरने का मौक़ा मिला है और हम उसे रबड़ी-मलाई की मानिंद चट कर गए हैं ।
दुनिया एक नये और मानीखेज़ मुहावरे का लुत्फ उठाती - ‘ट्रम्प
की घास चाटना’।
हिंदी के मुहावरा कोश में एक और मुहावरे की वृद्धि होती। हिंदी समृद्ध होती। कुछ
लोग ज़रूर इस मुहावरे में से ‘घास’
शब्द
का लोप करके अर्थ का अनर्थ करते लेकिन हम उसकी कतई चिंता नहीं करते। हम चरते। पूरी
घास को रबड़ी-मलाई की तरह चट कर जाते।
ट्रम्प
की घास का स्वाद भी कोई काजू-किसमिस से कम नहीं । चरो तो ऐसा लगता है मानो
ड्रायफ्रूट का भंडार चर रहें हो। लेकिन ट्रम्प की घास डलती हमारे सामने तब न हम
ड्रायफ्रूट का लुत्फ उठा पाते । डाली ही नहीं घास कमबख्त ट्रम्प ने। हम मायूस हैं
। बहुत मायूस हैं लेकिन बता दें कि हतोत्साहित बिल्कुल नहीं हैं। हम कोशिश करेंगे।
निरंतर कोशिश करेंगे। मरते दम तक कोशिश करते रहेंगे की ट्रम्प हमें घास डाले और हमें
भी उसकी घास चरने का स्वर्णिम अवसर मिल सके। देर-सवेर कभी न कभी तो वह अवसर मिल
ही जाएगा।
देखो
भैया, जब
तक हमारा देश एक बड़ी चरागाह है, और
हम उसके चरवाहे हैं, तब
तक कोई हमें घास डाले या ना डाले,
उसे झक मार कर हमारे यहाँ चरने तो आना ही पड़ेगा। हम भी देखेंगे कि यह ट्रम्प का
बच्चा कब तक हमें घास नहीं डालता । हमारी चरागाह को चरने की अगर रत्ती भर भी
साम्राज्यवादी तमन्ना है तो उसके तो बाप को भी हमें घास डालना पड़ेगी। देखते
हैं कैसे नहीं डालता।
-०-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें