गुरुवार, 20 मार्च 2025

ट्रम्प की लात

//व्‍यंग्‍य - प्रमोद ताम्बट //

ट्रम्प की घास न डालने वाली ट्रेजडी का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि उसने हमारे पृष्ठ भाग पर कस के लात मार दी। लात भी ऐसी मारी कि हाथ में हथकड़ी और पैर में बेड़ी होने के कारण हम अपने पृष्ठ भाग का बचाव भी नहीं कर पाए न ही सहला पाए । जबकि नेपाल, पाकिस्तान जैसे देशों को और तो और चीन को भी ट्रम्प ने सहलाने की सुविधा दे दी क्योंकि उन्हें हथकडि़यों बेडि़यों में नहीं जकड़ा गया। हमारे साथ हमारे उस प्रिय दोस्त ने ऐसा कट्टर दुश्मनों जैसा सुलूक क्यों किया हमारा कोई राष्ट्रवादी कूटनीतिज्ञ बता ही नहीं रहा है। इधर अमेरिका के प्रति खानदानी अनुराग के कारण ‘आह’ तो हमारे मुँह से निकल ही नहीं रही है। ट्रम्प जी कहीं बुरा न मान जाए। बिना बुरा माने उन्होंने हमारा बहुत सारा आर्थिक नुकसान कर दिया है, खुदा न खास्ता अगर ट्रम्प जी बुरा मान जाते तो न जाने क्या गज़ब ढा देते। यह नुकसान विगत ग्यारह सालों की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है।
पिछले सतहत्तर सालों में देश में भले ही कुछ न हुआ हो लेकिन ऐसी लात भी कभी नहीं घली कि शर्म के मारे पानी-पानी भी न हुआ जा रहा हो। छप्पन इंच की छाती भले ही नहीं थी किसी नेता की लेकिन दुनिया के बड़े से बड़े गुंडे तक ऐसी ज़लील हरकत करने की हिम्मत पहले कभी नहीं जुटा पाए कि गुलामों की तरह भारतीयों को देश निकाला दे दिया गया हो। लात मारना तो दूर मारने के लिए लात उठाने का उपक्रम तक नहीं कर पाया कोई। लेकिन देखिए इज़्जत का पंचनामा करने वाली ऐसी हरकत की गुस्तााखी ट्रम्प ने तब कर के दिखा दी जब दुनिया में हमारी ओर आँख उठाकर देखने की हिम्मत किसी में नहीं है। चारों दिशाओं में हमारा डंका बज रहा है। यह बात अलग है कि वह डंका बजता हुआ दुनिया में और किसी को सुनाई नहीं देता।
एक सो इकत्तीस साल पहले तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्यवादी गुंडों ने हमारे देश के एक दुबले-पतले से इंसान को धक्का मार कर ट्रेन से उतार दिया था, तो उसने हिन्दुरस्तान वापस आकर वो तूफ़ान खड़ा किया कि उस तूफ़ान में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की गुंडागर्दी तिनकों की तरह हवा में उड़ गई, जबकि उस वक्त हमारे पास न कोई ताक़त थी न ही हौसला। मगर आज हम दुनिया के तथाकथित पाँचवे ताकतवर मुल्क हैं, 5 ट्रिलियन की इकानॉमी के मुहाने पर खड़े हैं। हौसले की बात तो न ही की जाए तो बेहतर है, विश्वगुरु होने के नाते वह हम में ठूस-ठूस कर भरा हुआ है। फिर भी अमेरिकन साम्राज्यवादी गुंडों के सामने हम पंगु और लाचार से खड़े हुए हैं। न केवल लाचार खड़े हैं बल्कि अपने पृष्ठ भाग को लात खाने के लिए स्व्तंत्र भी छोड़ रखा है कि आओ और लतिया लो जितना लतियाना है, हम उफ तक नहीं करेंगे। हमने मुँह सिल रखा है अपना।
देखने की बात यह है कि लगातार लातें खाने के बाद अब हम क्या करेंगे। लात से पड़ गए नील को सहलाकर, मलहम वगैरा लगाकर फिर अमेरिका की लात खाने पहुँच जाएँगे या ट्रम्प की उस लात को ही मरोड़ डालेंगे जो हमारी तशरीफ पर जमकर बरसी है और दुनिया के सामने बैंड बाजे के साथ हमारा जुलूस भी निकाला गया है । गनीमत है कि अमेरिका में बैंड-बाजे के आगे-आगे डांस करने का रिवाज़ नहीं है वर्ना वे बेड़ी-हथकड़ी डालकर लाए गए भारतीय दूल्हों के सामने नागिन डाँस पर नाचते हुए उन्हें भारत लाते, और हम तमाशबीनों की तरह तमाशा देखते रहते जैसे कि अब भी देख ही रहे हैं।
हमने लाल आँखें दिखाने वालों को कुर्सी पर बिठाया था ताकि दुनिया के सारे मुल्क डर के मारे हमें नज़रें नीची रखकर ही देखें, लेकिन हो उल्टा रहा है। लाल आँखों वाले नज़रें झुकाकर हममें लातें घलते हुए देख रहे हैं, उन्होंने ट्रम्प की लात को कनखियाँ भी दिखाने की कोशिश नहीं की।
ताज्जुब की बात तो यह है कि मीडिया ने ट्रम्प की लात के पवित्र होने के कसीदे नहीं कसे। वाट्सअप यूनिवर्सिटी ने ट्रंप की लात का गुणगान नहीं किया, उसकी आरती नहीं उतारी । यह बिल्कुल भी अच्छीे बात नहीं है। जब तक ट्रम्प की लात का महिमामण्डन नहीं होगा तब तक ट्रम्प और ट्रम्प के परम भारतीय मित्र खुश कैसे होंगे, शाबासी कैसे देंगे। हमारे प्यांरे घुसपैठिये दोबारा, तिबारा, चौबारा चोर रास्ते से अमेरिका में घुसकर पकड़ाएँगे कैसे और ट्रम्प की लात बार-बार हमारे पृष्ठ भाग पर पडे़गी कैसे। आखिर ट्रंप की लात भी हमारे लिए किसी ईनाम से कम थोड़ी न है।
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