शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

मोक्ष के दरवाज़े पर आपका स्‍वागत है

 //व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्‍बट//

 कुंभ यात्रियों की भीड़ से खचाखच से भी ज्‍़यादा भरे दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचने से कई लोग मारे गए। इससे पहले कि कोई परम ज्ञानी संत घोषणा करे कि चूँकि मरने वाले कुंभ यात्री थे इसलिए भले ही लोग कुंभ की भगदड़ की बजाय स्टेशन की भगदड़ में मरें हों टिकट उनकी भी मोक्ष की ही कटेगी, मैं संतों से अपील करना चाहता हूँ कि मृतकों को भले ही मोक्ष मिले लेकिन भगदड़ के दोषियों को भी तो कुछ न कुछ मिलना चाहिए। मोक्ष के एजेंटों को यह साफ़ करना चाहिए कि भगदड़ के असली दोषी हैं कौन और मोक्षधाम में उनके लिए क्या सजा मुकर्रर की जाएगी? की भी जाएगी या वे वहाँ भी ले दे के छूट जाएँगे।

इधर अर्बन नक्सल लोग सवाल दाग़ रहे हैं कि गलती किसकी है, गलती किसकी है। हमको मालूम है कि सबको मालूम है गलती किसकी है, फिर भी गलती किसी की नहीं निकलने वाली और आरोप-प्रत्‍यारोप का सिलसिला हमेशा की तरह यूँ ही चलता रहेगा। विश्‍वस्‍त सूत्रों के अनुसार दक्षिण पंथियों द्वारा इस मामले में पश्चिमी वैज्ञानिक जेम्स वाट को फँसाया जा सकता है जिसने भाप के इंजिन का आविष्कार किया था। न वो यह वाहियात आविष्कार करता, न ट्रेन बनती, न रेलवे स्टेशन बनाना पड़ता, न स्टेशन पर भगदड़ मचती, न लोग मरते।

उधर वामपंथी सारा दोष वेदव्यास पर थोप सकते हैं। न वे विष्णु पुराण लिखते, न समुद्र मंथन होता, न अमृत निकलता, न इंद्रपुत्र अमृत कलश लेकर भागते, न प्रयागराज में कलश से अमृत टपकता, न प्रयागराज कुंभ का आयोजन होता, न लोग घर का बाल्‍टी मग्‍गा छोड़कर कुंभ स्नान के लिए पगलाते, न स्टेशन पर भीड़ लगाते, न भगदड़ मचती न लोग मरते।

कोई चाहे तो वास्कोडिगामा पर आरोप थोप सकता है उसने भारत की खोज क्यों कर दी जहाँ पौराणिक गपोडि़यों की बातों में आकर हर बारह साल में कुंभ का मेला भरता है। नदी में नहाने के लिए भीड़ लगती है, भगदड़ मचती है और लोग मरते हैं । किसी की इच्छा हो तो उसको दोष दे ले जिसने दिल्ली बसाई और उसे भी जिसने दिल्ली को राजधानी बनाया। फिर जिस किसी ने दिल्ली तक रेलवे लाइन और रेलवे स्टेशन का प्रस्ताव बनाया है उसकी भी लगे हाथ ऐसी तैसी कर ली जाए । न भारत की खोज होती न दिल्‍ली बसती न स्‍टेशन बनता न ट्रेनें चलती न लोग इकट्ठे होते न भगदड़ मचती न लोग मरते।

किसी की इच्छा हो तो दूरसंचार विज्ञान और टेक्नोलॉजी को कोस ले, न ये बलाएँ होतीं न संचार माध्यम होते न टी वी, मोबाइल होता न इंटरनेट होता, न फेसबुक वाट्सअप यूनिवर्सिटी होती न घर-घर में कुम्भ स्नान की महिमा का बखान पहुँचता न अंधविश्वासु लोग काम-धाम छोड़कर जत्थे के जत्थे बनाकर अपने पाप धोने के लिए प्रयागराज की और दौड़ पड़ते, न भगदड़ होती न लोग मरते। वैसे पापी, पाप और उसकी पानी में धुलनशीलता की अंध-अवधारणा का भी कम दोष नहीं लोगों को मौत की और दौड़ लगाने को मजबूर करने के लिए। लोग पापों से दूर रहकर धुले-पुछे नहीं रहना चाहते पाप करके मटमैली गंगा में डुबकी लगाकर पापों से मुक्ति चाहते हैं। उन्‍हें पता नहीं है लाखों की तादात में प्रदूषित पानी में उतरकर उन्‍हें पुण्‍य तो नहीं छूत के रोग अवश्‍य मिल सकते हैं।

किसी और को किसी और पर दोष थोपना हो तो थोप लो। किसी पर कुछ थोपने में कोई खर्चा थोड़ी न आता है। सब के ऊपर दोषारोपण आरोप प्रत्यारोप कर लो लेकिन भूल कर भी असली मुजरिम को कुछ भी न कहना। क्‍योंकि जानते सब हैं लेकिन पहचानता कोई नहीं है कि आख़िर कौन है असली मुजरिम जो बार-बार ऐसे धार्मिक सामाजिक जमावड़ों में भगदड़ का सूत्रपात करता है? कौन भगदड़ की वस्तुस्थिति पैदा करता है। आपको शायद अचानक याद नहीं आयेगा लेकिन मैं याद दिला देता हूँ। पागलपन की हद तक अंधश्रद्धा, अंधआस्‍था, अंधविश्‍वास, अंधाचरण, अुधानुकरण, अंधभक्ति, अंधासक्ति आदि-आदि न हो तो न फालतू का जमावड़ा हो, न भगदड़ मचे, न लोग कुचले जाएँ, न मौत का तांडव हो। याद आया कुछ, नहीं ? तो तुम्‍हारा कुछ नहीं हो सकता।  तुम ज़रूर अगली भगदड़ और मौत के तांडव के साक्षी बनने के लिए पूरी तौर पर तैयार हो। मोक्ष के दरवाजे पर अवश्‍य ही तुम्‍हारे जोर-शोर से स्‍वागत के लिए पूरी तैयारियाँ हैं। 

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