मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

कुएं में कूदने के लिए टर्नआउट

//व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्‍बट//

लो साब, मुझे अब पता चला कि 2024 में मैंने वोट डालने के लिए बूथ की तरफ़ जो टर्न लिया था उसके लिए अमेरिका ने पैसा दिया था, यह बात अलग है कि वह पैसा मुझे आज तक मिला ही नहीं है। 2024 में ही क्यों, उसके पहले 2019 में भी मैंने वोट डाला था और 2014 में भी। मतलब हर बार जब मैं वोट डालने के लिए बूथ की तरफ़ टर्न होता हूँ तो उसके लिए अमेरिका पैसा भेजता रहा है लेकिन वो पैसा मुझ तक कभी पहुँचता ही नहीं है, बीच में ही उसे कोई खा जाता है।

पहले कोई बूथ की तरफ टर्न ही नहीं होता था। खास कर के नौजवान कभी टर्न नहीं होता था क्‍योंकि उसका सोचना था कि वोटों की राजनीति से इस देश का कभी भला नहीं होने वाला। फिर अचानक पता नहीं कैसे नौजवान न केवल बूथ की ओर टर्न होने लगा बल्कि भर-भर के वोट भी डालने लगा। बड़ी तादात में नौजवान टर्न होकर वोट डालकर बदलाव के सपने देखने लगा। पता नहीं किसने किसको कितना पैसा भेजा था जो नौजवान लोगों में यह क्रांतिकारी परिवर्तन आ गया था और वे देशभक्‍त वोटर बन गए। सभी हर बार बूथ की तरफ़ टर्न होकर किसी न किसी को वोट डालकर आने लगे मगर हर बार सबको इसी तरह बेवकूफ बनाया जाता रहा है। वो तो भला हो विश्‍व साहूकार ट्रम्प का जो उसने दुनिया भर को बता दिया कि लोकतंत्र से निराश लोगों के बूथ पर टर्नआउट होकर वोट डालने के लिए उन लोगों ने बड़ी भारी मात्रा में इधर डॉलर भेजा था। कौन कम्बख़्त सारा पैसा खा गया किसी को कुछ पता ही नहीं चला।

अब तो मुझे बुरी तरह शक होने लगा है कि हमारे देश के लोग जो कुछ भी हिलना-डुलना करते हैं अमेरिका सब के लिए पैसा देता है। मसलन देश क्या खाए-पीये, क्या सोचे-विचारे, क्या दुःख मनाए क्या खुशी मनायें, कब ताली-थाली बजाए, कब गोबर-गोमूत्र से नहाए, कब किसकी जय-जयकार करे, कब किसकी इज़्ज़त की मट्टी-पलीत कर दे, सबके लिए अमेरिका अवश्य ही पैसा भेजता होगा। पैसा किसी को मिलता नहीं यह बिल्कुल अच्छी बात नहीं है। लोग इतने भक्तिभाव से अमेरिका की फंडिंग का मकसद पूरा करते हैं तो लोगों को उनके लिए आया पाई-पाई पैसा दिया जाना चाहिए।

हाल ही में लोग बड़ी मात्रा में वेलेंटाइन वीक मनाने के लिए टर्न हुए, अवश्य ही इसके लिए भी अमरीका से पैसा आया होगा ताकि भारतीय लोग देशी के साथ-साथ विदेशी मार्केट को भी सीपीआर दे सकें । अभी कुंभ में बड़ी भारी संख्या में श्रद्धालुओं का टर्नआउट हो रहा है। इससे पहले कभी किसी कुंभ में ऐसा पागलपन भरा टर्नआउट देखने को नहीं मिला। बताइये भला इतनी बड़ी तादात में श्रद्धालुओं का कीचड़ में नहाने के लिए प्रयागराज की तरफ़ टर्न होने का कोई जायज़ कारण नज़र आता है क्या, सिवा इसके कि इस टर्नआउट के लिए भी अरबों-खरबों डॉलर अमेरिका से आया हो! पिछले कई सालों में धर्म और धर्मान्धता की तरफ़ बल्‍क टर्नआउट को देखते हुए भी यही शक गहराता है कि अमेरिका ज़रूर ही अपने बजट में कटौती कर के भारत को इसके लिए पैसा भेजता होगा और इससे यह भी खुलासा होता है कि हमारा देश जल्दी से जल्दी विश्वगुरु बन जाए अमेरिका को इसकी चिंता भी बहुत लगी रहती होगी और वह इसके लिए अपने बजट में विशेष प्रावधान भी करता होगा। इधर आकर पैसा जाता कहाँ है बस यही बात समझ में नहीं आती।

अमेरिका को दुनिया का बाप ऐसे ही तो नहीं कहा जाता । वाकई वो बाप बनकर सबकी आकांक्षाएँ पूरी करता है। जिसको जिस चीज़ के लिए पैसा चाहिए वह सांताक्‍लाज़ की तरह घर आकर देकर जाता है। बांगलादेश के लोगों को भी उसने अपने ही देश में आग लगाने के लिए पैसा दिया और उनका घर फूँक तमाशा भी देखा। दुनिया में जहाँ कहीं भी पैसे की आवश्यकता देखी जाती है अमेरिका वहाँ पैसा पहुँचाकर पब्लिक टर्नआउट की अपनी साम्राज्यवादी ज़िम्मेदारी अवश्य पूरी करता है।

अभी आजकल मुझे एक मर्सिडीज़ बेंज ख़रीदने के लिए शोरूम की तरफ़ टर्न होने की बड़ी इच्छा हो रही है, कोई बता सकता है क्या कि इसके लिए अमेरिका मुझे पैसा देगा या नहीं देगा। लोग प्रेस-मीडिया ख़रीद रहें है, पुलिस-प्रशासन ख़रीद रहे हैं, अदालत-क़ानून  ख़रीद रहे, लोकतंत्र के सारे स्तंभों को ख़रीदकर अपनी जेब में रख रहे हैं, कहीं से तो पैसा आ ही रहा है तब तो न इतनी खरीददारी चल रही है । अब पता चला अमेरिका हर चीज़ के लिए पैसा बाँटने के लिए तैयार बैठा हुआ है। बस टर्नआउट भर होने के लिए तैयार रहना है। कोई हमें कुएं में कूदने के लिए टर्नआउट कराना चाहे तो अमेरिका से पैसा लेकर करा सकता है। हम तैयार हैं।  

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