//मोक्ष के लिए मरना काफी है-प्रमोद ताम्बट//
वे
हैरान परेशान से रिजर्वेशन ऐप्स पर आ जा रहे थे,
उन्होंने
कई टिकट एजेंटों को भी फ़ोन लगा लिए कि उन्हें किसी तरह प्रयागराज का रिजर्वेशन
मिल जाए तो कुंभ नहाँ लें और जीवन सफल हो जाए लेकिन रिजर्वेशन पाने में लगातार
असफल रहने की मायूसी उनके चेहरे पर आसानी से देखी जा सकती थी। इस बीच उन्होंने
सरकार को भी गालियाँ दे लीं कि उसकी लापरवाही की वजह से रेलवे रिजर्वेशन का ये हाल
हुआ रखा है कि वह कभी आसानी से किसी को मिलता ही नहीं। मुझसे उनकी परेशानी देखी
नहीं गई तो मैंने उनसे पूछा - क्या बात है,
अभी
इसी समय ही जाना क्यों ज़रूरी है कुंभ में?
दो
हफ़्ते बाद चले जाना।
वे
बोले नहीं- अभी दो दिन बाद भगदड़ मचने का शुभ मुहूर्त है। तुमने सुना नहीं भगदड़
में कुचल कर मरने वालों को सीधे मोक्ष मिलता है। इसलिए मुझे तो किसी भी हालत में तुरंत
कुंभ में पहुँचना है ।
मैंने
कहाँ - मरने कि ऐसी ही जल्दी है तो फिर हवाई जहाज़ से चले जाओं। थोड़े पैसे ही तो
ज़्यादा लगेंगे। आखिरी वक्त में भी अगर पैसे से मोह रखोगे तो फिर क्या फायदा ।
वे
बोले मरने की जल्दी नहीं,
मोक्ष की चिंता है। फ्री-फंड में मोक्ष कहाँ मिलता है भाई आजकल। लेकिन समस्या ये
है कि हवाई जहाज़ डायरेक्ट है नहीं । और जो घूम-फिर कर है भी उसके रेट आसमान छूने
के बावजूद टिकट नहीं मिल रहा। सब मोक्ष की कामना से दौड़े पड़ रहे है प्रयागराज।
हमें साली टिकट ही नहीं मिल रहीं।
मैंने
कहाँ- जब मरने ही जाना है तो फिर रिजर्वेशन क्यों देख रहे हो। किसी भी गाड़ी के
जनरल डिब्बे में घुस जाओ टॉयलेट के पास तो जगह मिल ही जाएगी। न हो तो किसी
मालगाड़ी के डिब्बे पर लटक कर चले जाओ। बस-ट्रक कुछ तो मिल ही जाएगा टँग कर चले
जाओ उसमें क्या।
वे
बोले- तुम भी कमाल करते हो। जनरल बोगी में या मालगाड़ी बस-ट्रक पर लटक कर मरने से
मोक्ष नहीं मिलता। कुंभ की भगदड़ में कुचलकर मरने से ही मोक्ष मिलता है। सुनी नहीं
विद्वान संतों की बातें। तुम्हें कुछ पता-वता होता नहीं चले आते हो राय देने।
मैंने
कहा- मोक्ष के लिए मरना ही काफ़ी है, कैसे
भी मरो। बस कर्म तुम्हारे ठीक-ठाक होने चाहिए।
वे
बोले- यही तो बात है। कर्म तो हमारे तुम जानते ही जो सब। सभी टाइप के पाप किए बैठे
हैं अपन। मोक्ष मिलने की संभावना बिल्कुल भी नहीं है। इसीलिए इस कुंभ की भगदड़ में
कुचल-मरने का शार्टकट अपनाने का मन बनाया है। भगवान ने साथ दिया तो कुछ न कुछ करके
एसी फ़र्स्ट क्लास में नहीं तो सेकंड क्लास में तो टिकट मिल ही जाएगी। मोक्ष में
तो फिर आनंद ही आनंद है।
मैंने
पूछा - मोक्ष में क्या आनंद है बताइये न ज़रा।
वे
बोले- पूछो मत। धरती से एकदम अलग होता है सब कुछ। कोई भागमभाग नहीं कोई दुख-दर्द
नहीं। आनंद ही आनंद, सुख
ही सुख। खाना-पीना और मस्त सोमरस का पान करते हुए सुंदर अप्सराओं को निहारना।
देवताओं के साथ द्यूत क्रीडा का आनंद लेना। और भी बहुत कुछ होता होगा। अपने को पता
नहीं है ज़्यादा कुछ। गए नहीं न कभी।
मैंने
पूछा - द्यूत क्रीडा। यह तो जुआ हुआ। मोक्ष में जुआ ?
वे बोले - बेवकूफ हो तुम तो। द्यूत क्रीड़ा कोई पैसों से
थोड़ी होती है। ऐसे ही टाइम पास के लिए होती है। पुण्यात्माओं का खेल है वो तो। वहाँ
सभी खेलते हैं।
मैंने कहा - अरे यार, सोमरस, अप्सरा, द्यूत
क्रीड़ा, इन सबके लिए भगदड़ में कुचलने जाना
चाहते हो क्या? इससे तो यहीं किसी पब-डिस्कोथेक में जाकर सब कुछ कर लो
कोई रोकता है क्या ? क्यों अपने प्राणों के दुश्मन बने हुए हो।
वे बोले - तुम बहुत ही भोले हो दोस्त। यहाँ यह सब
करेंगे तो पैसे खर्च होंगे, वहाँ सब
कुछ फ्री में है। बस कुंभ की भगदड़ में कुचल कर मर भर जाओ फिर बस आनंद ही आनंद है।
मैंने उन्हें मोबाइल के साथ छोड़कर आगे बढ़ने में ही
भलाई समझी। वे अब तक लगे हुए है भगदड़ के मुहूर्त के पहले का रिजर्वेशन तलाशने
में।
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