शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

फर्ज़ी डिग्री के दम पर

//व्यंग्य -प्रमोद ताम्बट//

दुनिया के तमाम मुल्‍कों ने तमाम क्षेत्रों में तरक्‍की की है, हमने शिक्षा के क्षेत्र में झंडे गाड़े हैं। झंडे भी कोई ऐसे वैसे नहीं गाड़े, हमारे गाड़े झंडे दुनिया के किसी भी कोने से बड़ी आसानी से फरफराते नज़र आ सकते हैं, अगर बंद आँख से भी देखने की कोशिश की जाए। यहाँ तक कि ये झंडे धुर उत्‍तरी और दक्षिणी ध्रुवों से भी साफ-साफ दिखाई दे जाएँ, चाहे कितनी भी बर्फबारी हो रही हो।

अंग्रेजों के ज़माने में जब लॉर्ड मैकाले ने भारतीय शिक्षा पद्धति को डिज़ाइन करने के लिए अपना सिर खपाया तब उसने ख्‍वाब में भी नहीं सोचा होगा कि कालान्‍तर में दुनिया भर की शिक्षा व्‍यवस्‍थाएँ उसकी डिजाइन की हुई भारतीय शिक्षा व्‍यवस्‍था से इस बुरी तरह पिछड़ जाएँगी कि कोई सपने में भी न सोच सके। बताइये भला, बिना किताबों का बोझ ढोए, बिना स्‍कूल-कॉलेज जाए, बिना पढ़े-लिखे, बिना परीक्षा दिए, बिना पास हुए, घर बैठे आदमी ग्रेजुएट-पोस्‍ट ग्रेजुएट, डाक्‍टर-इन्‍जीनियर की डिग्रियाँ हासिल कर ले, डाक्‍टरेट-वाक्‍टरेट भी कर मारे, इससे क्रांतिकारी उपलब्धि और क्‍या हो सकती है? दूसरा कोई बड़ा से बड़ा मुल्‍क हमारी इस अद्भुत उपलब्धि के आसपास भी नहीं फटक सकता।

एक बात तो सोलह आना सच है कि प्रिटिंग मशीन के अविष्‍कार ने दुनिया को बस मोटी-मोटी किताबों का बोझ ही दिया है जिस कारण टेढ़ी कमर वाले छात्रों की पीढ़ियाँ दर पीढ़ियाँ अस्तित्‍व में आती जा रही थी। मगर हमने उस प्रिटिंग मशीन पर फर्ज़ी डिग्रियों की बल्‍क छपाई करवाकर अपने छात्रों के सर पर उस बोझ का साया भी नहीं पड़ने दिया। फर्ज़ी डिग्रियों की छपाई के इस कौशल से हमने शिक्षा को तो स्‍तरीय बनाया ही बनाया है, छपाई की कला में भी हम इस कदर सिद्धहस्‍त हुए हैं कि एक बार असली डिग्री को आसानी से नकली डिग्री साबित किया जा सकता है परन्‍तु हमारी छापी गई नकली डिग्री को नकली डिग्री साबित करने में बड़े-बड़े विशेषज्ञों को भी नाकों चने चबाना पड़ जाता है। अब यही देखिए, हाल ही में कुछ बावले हमारे प्रिय प्रधानमंत्री की डिग्रियों को नकली साबित करने पर तुले हुए थे लेकिन शर्तिया यह पक्‍की बात है कि वे डिग्रियाँ शत-प्रतिशत असली हैं। असली हैं इसीलिए बावले उनमें दर्जनों मीनमेख निकाल पा रहे थे, अगरचे वे नकली होतीं तो कोई माई का लाल उनमें रत्‍ती भर का भी मीनमेख नहीं निकाल पाता।   

किताबी कीड़ों का दुनिया भर में हमेशा आतंक रहा है। कम्‍बखत सारी डिग्रियाँ खुद ही हड़प लिया करते रहे हैं। न केवल डिग्रियाँ बल्कि आई..एस, आई.पी.एस से लेकर चपरासी तक की नौकरी पर इन्‍हीं का कब्‍ज़ा रहता आया है। हमने देश को इस कलंक से मुक्ति दिला दी। हमने नकल संस्‍कृति के तूफानी विकास और विस्‍तार के साथ-साथ देश के कोटि-कोटि नालायकों तक फर्ज़ी डिग्रियों की सप्‍लाई सुलभ करवाई ताकि वे भी सम्‍मानजनक नौकरियों में जाकर देश सेवा करें और गौरवान्वित महसूस कर सकें। कुछ प्रतिभाशाली लोगों ने तो इन्‍हीं फर्ज़ी डिग्रियों के प्रताप से देश की राजनीति का मान बढ़ाने में प्रचंड सफलता पाई है। जबकि असली डिग्री वाले लाखों उल्‍लू के पट्ठे छात्र दर-दर भटक रहे हैं। वे भी अगर अपनी असली डिग्री को आग के हवाले कर के नकली डिग्री जुगाड लेते तो अब तक तो न जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाते।  

एक ज़माना था जब लोग फर्ज़ी शब्‍द से थर-थर कॉपते थे और चुपचाप शराफत के लिबास में लिपटे स्‍कूल-कॉलेज और यूनिवर्सिटीज़ में पढ़-पढ़ कर चश्‍में वालों का धंधा चमकाया करते थे। फर्ज़ी डिग्रियाँ दूर की कौड़ी होती थीं लिहाज़ा हाड़ तोड़ मेहनत और मशक्‍कत करके असली डिग्री की भीख सी माँगनी पड़ती थी। हमने परिस्थिति में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया। डिग्रियों को चना जोर गरम और मुँफली के ढेर की तरह गली-गली में बेचने के लिए पहुँचवा दिया । जिसको जो विषय पसंद हो, आओ, पैसा फैको, डिग्री तुलवाओ और चलते बनो।

हमारा दृढ़ संकल्‍प है कि भविष्‍य में हम अपनी सेवाओं का व्‍यापक विस्‍तार करेंगे। हमारे आदमी साथ में डिग्रियों का कैटलॉग लेकर घर-घर जाकर लोगों की पसन्‍द की‍ डिग्रियाँ बेचेंगे। ऑन लाइन खरीदारी की सुविधा भी हम शीघ्र ही चालू करने वाले हैं। आप समुचित ऑफलाइन-ऑनलाइन भुगतान कर अपनी मन पसन्‍द डिग्री, अपनी सुविधा के वर्ष और कॉलेज-यूनिवर्सिटी के हिसाब से हमारी साइट से सीधे डाउनलोड कर सकेंगे।

सचमुच, शिक्षा के क्षेत्र में यह एक युगान्‍तरकारी पड़ाव है। हमने कसम खाई है कि मैकाले की शिक्षा पद्धति के पारम्‍परिक ढाँचे को चूर-चूर करके एक नई रोशनी का मार्ग प्रशस्‍त करेंगे। दुनिया की किसी भी यूनिवर्सिटी के किसी भी कोर्स की फर्ज़ी डिग्रियों के दम पर हम अपने इस देश को दुनिया का सिरमोर बना कर ही दम लेंगे।                  

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